पहलगाम आतंकी हमले के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आखिरकार अपनी जांच को एक अहम मोड़ पर पहुंचा दिया है। करीब आठ महीने बाद एनआईए ने जम्मू की विशेष अदालत में इस मामले में आरोपपत्र दाखिल किया है। यह आरोपपत्र न सिर्फ आतंकियों की साजिश को सामने लाता है, बल्कि उन स्थानीय लोगों की भूमिका भी उजागर करता है जिन्होंने आतंकियों को पनाह और मदद दी।
यह हमला देश को झकझोर देने वाला था। शांत माने जाने वाले पहलगाम इलाके में हुए इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। इस घटना के बाद पूरे देश में गुस्सा और दुख दोनों देखने को मिला। अब एनआईए की चार्जशीट से यह साफ हो गया है कि यह हमला पूरी योजना के तहत किया गया था।
पहलगाम हमला और उसकी पृष्ठभूमि
पहलगाम जम्मू और कश्मीर का एक मशहूर पर्यटन स्थल है। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। ऐसे इलाके में आतंकी हमला होना सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। इस हमले में निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया, जिससे साफ था कि आतंकियों का मकसद डर फैलाना था।
हमले के तुरंत बाद जांच एजेंसियां सक्रिय हो गई थीं। शुरुआती जांच में ही सीमा पार से आतंकियों के आने के संकेत मिले थे। इसके बाद मामला एनआईए को सौंपा गया, ताकि गहराई से जांच हो सके।
#WATCH | Jammu | NIA officials arrive at Special NIA court to file chargesheet in Pahalgam terror attack case pic.twitter.com/pSTPkes8vS
— ANI (@ANI) December 15, 2025
जांच में सामने आए आतंकियों के नाम
एनआईए की जांच में सामने आया कि इस हमले में सीधे तौर पर तीन आतंकवादी शामिल थे। इनके नाम सुलेमान शाह, हमजा और जिब्रान बताए गए हैं। इन तीनों को भारतीय सेना ने बाद में ऑपरेशन महादेव के तहत मार गिराया था।
जांच एजेंसी के अनुसार, ये तीनों आतंकी पाकिस्तान के नागरिक थे और प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। इन्होंने स्थानीय मदद के जरिए इलाके में ठिकाना बनाया और फिर इस हमले को अंजाम दिया।
स्थानीय मददगारों की भूमिका
एनआईए की चार्जशीट में तीन स्थानीय लोगों के नाम भी शामिल किए गए हैं। ये हैं बशीर अहमद जोठर, परवेज अहमद जोठर और मोहम्मद यूसुफ कटारी। जांच में पता चला कि इन लोगों ने आतंकियों को हमले से एक दिन पहले ठहरने की जगह दी थी।
बशीर और परवेज जोठर दोनों स्थानीय निवासी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आतंकियों को 21 अप्रैल की रात हिल पार्क इलाके की एक झोपड़ी में ठहराया था। इसके साथ ही उन्हें खाना और अन्य जरूरी सामान भी दिया गया।
मोबाइल फोन से मिले अहम सुराग
एनआईए को जांच के दौरान इन स्थानीय मददगारों के मोबाइल फोन से कई अहम सुराग मिले। उनके फोन में कुछ पाकिस्तानी नंबर पाए गए, जिनसे संपर्क होने की बात सामने आई है। इससे यह साफ होता है कि यह केवल स्थानीय स्तर की मदद नहीं थी, बल्कि सीमा पार से भी संपर्क बना हुआ था।
जांच एजेंसी का मानना है कि इन्हीं संपर्कों के जरिए आतंकियों को निर्देश और सहायता मिल रही थी।
गिरफ्तारी और पूछताछ
जोठर भाइयों को हमले के लगभग दो महीने बाद 22 जून को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के दौरान उन्होंने कई अहम बातें कबूल कीं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जिन आतंकियों को उन्होंने पनाह दी थी, वे पाकिस्तान के नागरिक थे और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे।
इन बयानों ने एनआईए की जांच को और मजबूत किया और पूरी साजिश की कड़ी जोड़ने में मदद मिली।
आतंकी संगठन और उनकी साजिश
चार्जशीट में लश्कर-ए-तैयबा के साथ-साथ उसके प्रॉक्सी संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट का भी नाम लिया गया है। जांच के अनुसार, यह हमला इन्हीं संगठनों की योजना का हिस्सा था।
इन संगठनों का मकसद कश्मीर में अशांति फैलाना और शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाना है। पर्यटक स्थल पर हमला कर उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है।
सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल
पहलगाम जैसे इलाके में हमला होना सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। हालांकि, हमले के बाद सुरक्षा बलों ने तेजी से कार्रवाई की और आतंकियों को ढेर कर दिया, लेकिन स्थानीय मददगारों की भूमिका ने चिंता बढ़ा दी है।
यह साफ है कि जब तक स्थानीय स्तर पर सहयोग नहीं मिलता, आतंकी ऐसे हमले नहीं कर सकते। इसलिए अब सुरक्षा एजेंसियां स्थानीय नेटवर्क पर भी ज्यादा नजर रख रही हैं।
न्याय की दिशा में एक कदम
एनआईए द्वारा आरोपपत्र दाखिल किया जाना न्याय की दिशा में एक अहम कदम है। इससे पीड़ित परिवारों को उम्मीद मिली है कि दोषियों को सजा जरूर मिलेगी।
अब यह मामला अदालत में चलेगा और सबूतों के आधार पर फैसला होगा। देश की नजर इस केस पर टिकी हुई है।
आगे की राह और सबक
इस पूरे मामले से एक बड़ा सबक मिलता है कि आतंकवाद केवल बंदूक उठाने वालों से नहीं चलता, बल्कि उन्हें सहारा देने वाले लोग भी उतने ही जिम्मेदार होते हैं। ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई जरूरी है।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह जरूरी है कि वे स्थानीय लोगों का भरोसा जीतें और साथ ही संदिग्ध गतिविधियों पर कड़ी नजर रखें।