झारखंड के प्रवासी मजदूर एक बार फिर विदेश में मुसीबत में फंस गए हैं। इस बार अफ्रीका के कैमरून में झारखंड के गिरिडीह और हजारीबाग जिले के पांच मजदूर बुरी तरह फंसे हुए हैं। कंपनी द्वारा काम के बदले मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है और मजदूरों को रहने, खाने-पीने की बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विदेश में फंसे इन मजदूरों ने वीडियो संदेश के माध्यम से अपनी पीड़ा साझा करते हुए केंद्र और राज्य सरकार से तत्काल मदद की गुहार लगाई है।
कौन हैं फंसे हुए मजदूर
अफ्रीका के कैमरून में फंसे पांच मजदूरों में से चार हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र के हैं जबकि एक मजदूर गिरिडीह जिले के डुमरी का रहने वाला है। हजारीबाग के विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत ऊंचाघना गांव के सुनील महतो और सुकर महतो, करगालो गांव के चंद्रशेखर कुमार तथा डीलों महतो शामिल हैं। गिरिडीह जिले के डुमरी के दिलचंद महतो भी इन फंसे मजदूरों में शामिल हैं।
ये सभी मजदूर बेहतर रोजगार और अधिक कमाई की उम्मीद में कैमरून गए थे, लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनकी स्थिति बेहद दयनीय हो गई। एजेंटों द्वारा दिए गए झूठे आश्वासनों के कारण ये मजदूर वहां फंस गए और अब उन्हें वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।
वेतन नहीं मिल रहा, रहने-खाने की समस्या
कैमरून में फंसे मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि कंपनी उन्हें उनके काम के बदले वेतन का भुगतान नहीं कर रही है। महीनों से काम करने के बावजूद उन्हें उनकी मेहनत का पैसा नहीं मिला है। वेतन न मिलने के कारण मजदूरों के पास खाने-पीने और रहने की व्यवस्था करने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं।
मजदूरों को वहां रहने के लिए उचित आवास नहीं मिल रहा है और खाने-पीने की भी गंभीर समस्या है। विदेश में अकेले और असहाय स्थिति में फंसे ये मजदूर मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हैं। उनके परिवार भी झारखंड में चिंतित हैं और सरकार से अपने परिजनों को सुरक्षित वापस लाने की अपील कर रहे हैं।
वीडियो के माध्यम से लगाई मदद की गुहार
विदेश में फंसे मजदूरों ने एक वीडियो संदेश बनाकर अपनी दुर्दशा को सामने रखा है। यह वीडियो प्रवासी मजदूरों के हित में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली को भेजा गया है। सिकंदर अली ने इस वीडियो को मीडिया के साथ साझा करते हुए सरकार का ध्यान इस गंभीर मुद्दे की ओर आकर्षित किया है।
वीडियो में मजदूर अपनी पीड़ा बयान करते हुए केंद्र सरकार और झारखंड सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें कंपनी द्वारा झूठे वादे करके कैमरून बुलाया गया था, लेकिन वहां पहुंचने के बाद सभी वादे खोखले साबित हुए। अब वे सिर्फ अपने घर वापस लौटना चाहते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता ने की कूटनीतिक पहल की मांग
प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने केंद्र और राज्य सरकार से कैमरून में फंसे मजदूरों की सुरक्षित वतन वापसी के लिए ठोस कूटनीतिक पहल करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब झारखंड के प्रवासी मजदूर विदेश में फंसे हैं।
सिकंदर अली ने कहा कि विदेशों में फंसने वाले मजदूरों का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार प्रवासी मजदूर अधिक पैसे कमाने की लालच में विदेश जाकर फंस चुके हैं। काफी मशक्कत और सरकारी प्रयासों के बाद उनकी वतन वापसी कराई गई थी। लेकिन इसके बावजूद प्रवासी मजदूर पुरानी घटनाओं से सबक नहीं ले रहे हैं और बार-बार इस तरह की स्थितियों में फंस जाते हैं।
पहले भी कई बार फंसे झारखंड के मजदूर
झारखंड के प्रवासी मजदूरों के विदेश में फंसने की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं। इसी महीने सरकार के प्रयास से ट्यूनीशिया में फंसे 48 मजदूरों की वतन वापसी हुई है। ये मजदूर भी वहां कठिन परिस्थितियों में फंसे हुए थे और सरकारी हस्तक्षेप के बाद ही वे अपने घर लौट सके।
इसके अलावा लगभग सात महीने से गिरिडीह जिले के बगोदर के पांच अगवा मजदूर नाइजर में फंसे हुए हैं और अब तक उनकी रिहाई नहीं हो सकी है। यह मामला और भी गंभीर है क्योंकि इन मजदूरों का अपहरण किया गया है और उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता है।
इसके साथ ही गिरिडीह जिले के डुमरी के प्रवासी मजदूर विजय कुमार महतो का शव एक महीने से सऊदी अरब में पड़ा है। उनके परिवार वाले उनके शव को स्वदेश लाने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है।
एजेंटों के झूठे वादों में फंसते मजदूर
विदेश में फंसने वाले अधिकांश मजदूर एजेंटों के झूठे वादों के शिकार होते हैं। ये एजेंट मजदूरों को बड़ी रकम कमाने का सपना दिखाते हैं और उन्हें विदेश भेजने का वादा करते हैं। लालच में आकर गरीब मजदूर अपनी जमीन-जायदाद बेचकर या कर्ज लेकर एजेंटों को मोटी रकम देते हैं।
विदेश पहुंचने के बाद ही उन्हें पता चलता है कि उनके साथ धोखा हुआ है। वहां न तो उन्हें वादे के अनुसार काम मिलता है और न ही पर्याप्त वेतन। कई बार तो उनके पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज भी जब्त कर लिए जाते हैं, जिससे वे वापस लौटने में असमर्थ हो जाते हैं।
सरकार को क्या करना चाहिए
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को कई स्तरों पर कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले तो अवैध एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जो मजदूरों को झूठे वादे करके विदेश भेजते हैं।
विदेश जाने वाले मजदूरों को उचित प्रशिक्षण और जागरूकता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे धोखाधड़ी के शिकार न हों। केवल पंजीकृत और मान्यता प्राप्त एजेंसियों के माध्यम से ही विदेश में रोजगार की अनुमति दी जानी चाहिए।
विदेश में फंसे मजदूरों की मदद के लिए भारतीय दूतावासों में विशेष सेल की स्थापना होनी चाहिए। प्रवासी मजदूरों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए जहां वे किसी भी समस्या की स्थिति में तुरंत संपर्क कर सकें।
परिवारों की चिंता और अनिश्चितता
कैमरून में फंसे मजदूरों के परिवार झारखंड में बेहद चिंतित हैं। उन्हें अपने परिजनों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता है। कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को विदेश भेजने के लिए कर्ज लिया था या संपत्ति बेची थी। अब न तो उनके परिजन वापस आ रहे हैं और न ही कोई पैसा भेज पा रहे हैं।
ऐसे में इन परिवारों की आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब हो गई है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। परिवार वाले दिन-रात सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि किसी तरह उनके परिजनों को सुरक्षित वापस लाया जाए।
सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली ने सरकार से अपील की है कि वह तत्काल कूटनीतिक स्तर पर कैमरून सरकार से संपर्क करे और इन मजदूरों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि यह मानवीय मुद्दा है और सरकार को इसे प्राथमिकता से लेना चाहिए।