हिंगोली की राजनीति में उठापटक, एनसीपी के भीतर मची हलचल
हिंगोली जिले की राजनीति इन दिनों अचानक सुर्खियों में है। नगर पालिका और जिला परिषद चुनाव नजदीक आने के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार गुट में बड़ी हलचल देखी जा रही है। स्थानीय स्तर पर ऐसी चर्चा ज़ोरों पर है कि पार्टी के लगभग 90 प्रतिशत पदाधिकारी अजीत पवार गुट में शामिल होने की तैयारी में हैं।
मंगलवार, 14 अक्टूबर की शाम से ही यह अफवाहें तेज़ी से फैलने लगीं कि हिंगोली जिले के कई प्रमुख पदाधिकारी अजीत पवार गुट में शामिल होने वाले हैं। यह भी बताया जा रहा है कि 15 अक्टूबर को पुणे में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में इन नेताओं की औपचारिक एंट्री कराई जा सकती है।
अफवाह या हकीकत? – शरद पवार गुट में मची बेचैनी
हालांकि अभी तक किसी बड़े नेता ने इस टूट की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर बेचैनी साफ दिखाई दे रही है। शरद पवार गुट के कुछ स्थानीय नेताओं ने माना कि पार्टी के अंदर बातचीत और मनाने की कोशिशें चल रही हैं। उन्होंने कहा,
“यह सही है कि कुछ पदाधिकारी असंतुष्ट हैं, लेकिन अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। कुछ लोग आज शाम तक निर्णय लेने वाले थे। स्थिति कल तक साफ हो जाएगी।”
सोशल मीडिया पर भी हिंगोली जिले के संभावित नामों की एक सूची वायरल हो रही है, जिसमें पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों और नगर स्तर के नेताओं के नाम शामिल हैं। हालांकि, किसी विश्वसनीय स्रोत ने इस सूची की पुष्टि नहीं की है।
अजीत पवार गुट के विधायक की मध्यस्थता
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अजीत पवार गुट के एक विधायक ने इस प्रक्रिया में सीधी मध्यस्थता की है। बताया जाता है कि कुछ नेताओं के साथ उनकी हाल में गुप्त बैठक हुई थी, जिसमें आगामी चुनावों में बेहतर टिकट वितरण और स्थानीय विकास योजनाओं को लेकर चर्चा की गई थी।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हिंगोली में यह संभावित टूट एनसीपी शरद पवार गुट के लिए झटका साबित हो सकती है, क्योंकि यहां पार्टी की जमीनी पकड़ पहले से कमजोर हो चुकी है। वहीं, अजीत पवार गुट इसे अपने लिए “राजनीतिक पुनर्संगठन” के रूप में देख रहा है।
चुनावी समीकरण पर असर
नगर पालिका और जिला परिषद चुनाव के मद्देनजर यह घटनाक्रम राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है। अगर वाकई में 90% पदाधिकारी अजीत पवार गुट में चले जाते हैं, तो हिंगोली में एनसीपी (शरद पवार गुट) की संगठनात्मक स्थिति कमजोर हो जाएगी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हिंगोली जैसे जिलों में पार्टी कार्यकर्ताओं की एकता ही संगठन की ताकत होती है। ऐसी स्थिति में अगर इतनी बड़ी संख्या में पदाधिकारी गुट बदलते हैं, तो यह न केवल जिला संगठन के लिए, बल्कि राज्य स्तर पर भी एक संदेश जाएगा कि अजीत पवार गुट की पकड़ मजबूत हो रही है।
शरद पवार की रणनीति पर नजरें
इस पूरे घटनाक्रम के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि शरद पवार और उनके करीबी नेता इस स्थिति से कैसे निपटते हैं। महाराष्ट्र के अन्य जिलों जैसे नांदेड़, उस्मानाबाद और लातूर में भी इसी तरह की टूट की चर्चाएं पहले सुनाई दी थीं।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर हिंगोली में यह ट्रेंड शुरू होता है, तो यह श्रृंखलाबद्ध प्रभाव (Domino Effect) साबित हो सकता है, जिससे एनसीपी शरद पवार गुट की स्थिति अन्य जिलों में भी प्रभावित होगी।
जनता और कार्यकर्ताओं की राय
स्थानीय नागरिकों और कार्यकर्ताओं में इस खबर को लेकर उत्सुकता और चिंता दोनों है। कुछ लोगों का कहना है कि यह सिर्फ अफवाह है, जबकि कुछ कार्यकर्ता खुले तौर पर मान रहे हैं कि पार्टी के भीतर असंतोष काफी समय से बढ़ रहा था।
एक स्थानीय युवा नेता ने कहा –
“नेताओं को अब स्थानीय विकास और टिकट की उम्मीद है। अगर उन्हें मौका नहीं मिलेगा तो वे उस गुट में जाएंगे जो राजनीतिक रूप से प्रभावी दिख रहा है।”
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें 15 अक्टूबर को पुणे में होने वाले कार्यक्रम पर टिकी हैं। अगर वहां हिंगोली के पदाधिकारी अजीत पवार गुट में शामिल होते हैं, तो यह एनसीपी शरद पवार गुट के लिए राजनीतिक झटका साबित होगा।
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि यह अफवाह भले हो, लेकिन इससे शरद पवार गुट पर दबाव बढ़ेगा कि वे जल्द संगठनात्मक स्तर पर नए नेतृत्व और रणनीति की घोषणा करें।