साइबर अपराध के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आजकल ठग नए-नए तरीके अपनाकर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। इन दिनों डिजिटल अरेस्ट के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी तेजी से बढ़ी है। एक ताजा मामले में सामने आया है कि दुबई में बैठा एक मास्टरमाइंड भारत में डिजिटल अरेस्ट के नाम पर बड़े पैमाने पर साइबर फ्राड को अंजाम दे रहा है। इस धोखाधड़ी में अब तक 5 राज्यों के अलग-अलग बैंक खातों में करीब 96.60 लाख रुपये ट्रांसफर किए गए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब इसे मुंबई साइबर सेल को हस्तांतरित कर दिया गया है।
डिजिटल अरेस्ट का नया खेल
डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा शब्द है जो आजकल साइबर अपराधियों द्वारा लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें ठग खुद को पुलिस, सीबीआई, ईडी या किसी अन्य जांच एजेंसी का अधिकारी बताते हैं। फिर वे लोगों को डराते हैं कि उनके नाम पर कोई गंभीर मामला दर्ज है और उन्हें डिजिटल रूप से गिरफ्तार किया जा रहा है। इस तरह के झूठे आरोपों से डरकर लोग अपनी मेहनत की कमाई इन ठगों के खाते में ट्रांसफर कर देते हैं।
इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दुबई में बैठा मास्टरमाइंड अपनी टीम के साथ मिलकर भारत के अलग-अलग राज्यों में रहने वाले लोगों को निशाना बना रहा है। वह अपने साथियों के जरिए लोगों को फोन करवाता है और उन्हें कानूनी कार्रवाई का डर दिखाकर पैसे ऐंठ लेता है।
पांच राज्यों में फैला है धोखाधड़ी का जाल
जांच में सामने आया है कि इस साइबर धोखाधड़ी का असर सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है। अपराधियों ने पांच अलग-अलग राज्यों में रहने वाले लोगों को अपना शिकार बनाया है। इन पांच राज्यों के बैंक खातों में कुल 96.60 लाख रुपये ट्रांसफर किए गए हैं। यह रकम अलग-अलग पीड़ितों के खातों से निकाली गई है।
साइबर अपराधियों ने पीड़ितों को यह विश्वास दिलाया कि अगर वे तुरंत पैसे नहीं भेजते हैं तो उनके खिलाफ गंभीर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। कुछ लोगों को यह भी कहा गया कि उनके परिवार के सदस्यों को भी परेशानी हो सकती है। डर और घबराहट में लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई इन ठगों के हवाले कर दी।
कैसे काम करता है यह गिरोह
साइबर अपराधियों का यह गिरोह बेहद संगठित तरीके से काम करता है। सबसे पहले ये लोगों की निजी जानकारी हासिल करते हैं। इसके बाद वे पुलिस, सीबीआई या अन्य एजेंसी के नाम पर फोन करते हैं। कॉल के दौरान वे अपनी बातों को विश्वसनीय बनाने के लिए नकली आईडी कार्ड भी दिखाते हैं। कई बार तो वे वीडियो कॉल पर नकली वर्दी पहनकर भी सामने आते हैं।
फिर वे पीड़ित को बताते हैं कि उनके नाम पर मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स तस्करी या किसी अन्य गंभीर अपराध का मामला दर्ज है। वे कहते हैं कि मामले को रफा-दफा करने के लिए तुरंत कुछ रकम जमा करनी होगी। घबराहट में लोग बिना सोचे-समझे पैसे भेज देते हैं।
मुंबई साइबर सेल ने संभाली जांच की कमान
इस मामले की गंभीरता और इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर को देखते हुए अब मामले को मुंबई साइबर सेल को सौंप दिया गया है। मुंबई साइबर सेल देश की सबसे अनुभवी और सक्षम साइबर क्राइम जांच इकाइयों में से एक है। यहां के अधिकारियों के पास इस तरह के मामलों को सुलझाने का लंबा अनुभव है।
साइबर सेल की टीम अब दुबई में बैठे मास्टरमाइंड की पहचान करने और उसे पकड़ने की कोशिश कर रही है। साथ ही, यह भी पता लगाया जा रहा है कि गिरोह में और कौन-कौन शामिल है। जांच एजेंसियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय बनाकर इस मामले को सुलझाने में जुटी हैं।
आम लोगों के लिए सावधानी जरूरी
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज कानून में नहीं है। कोई भी सरकारी एजेंसी फोन या वीडियो कॉल पर किसी को गिरफ्तार नहीं करती। अगर किसी के खिलाफ कोई मामला होता है तो उसे लिखित नोटिस भेजा जाता है और कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई होती है।
लोगों को सलाह दी जा रही है कि अगर कोई अनजान व्यक्ति फोन पर पुलिस या किसी जांच एजेंसी का नाम लेकर पैसे मांगे तो तुरंत फोन काट दें। ऐसी किसी भी कॉल पर विश्वास न करें और न ही अपनी निजी जानकारी शेयर करें। किसी भी संदेह की स्थिति में तुरंत स्थानीय पुलिस या साइबर सेल को सूचित करें।
बैंकों और सरकार की भूमिका
इस तरह की धोखाधड़ी को रोकने के लिए बैंकों और सरकार को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। बैंकों को संदिग्ध लेनदेन पर तुरंत रोक लगानी चाहिए। साथ ही, ग्राहकों को समय-समय पर जागरूक करने की जरूरत है।
सरकार भी साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कोई भी व्यक्ति साइबर धोखाधड़ी की शिकायत कर सकता है।
डिजिटल अरेस्ट के नाम पर हो रही यह धोखाधड़ी एक गंभीर मामला है। दुबई से संचालित हो रहे इस साइबर फ्राड ने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है। मुंबई साइबर सेल की टीम अब इस मामले की गहन जांच कर रही है। लोगों को सतर्क रहने और किसी भी अनजान कॉल पर विश्वास न करने की सलाह दी जा रही है। साइबर अपराध से बचने के लिए जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है।