नागपुर में आज राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) द्वारा आयोजित 51वें संसदीय अध्ययन वर्ग का भव्य उद्घाटन हुआ। यह आयोजन केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को समझने वाले भविष्य के युवाओं के लिए एक सजीव कक्षा जैसा अनुभव था। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र विधानपरिषद के ऐतिहासिक सभागृह में इसका उद्घाटन किया। इस खास मौके पर उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से, मुझे हमेशा यह लगता रहा है कि जब तक युवा संसद और विधानमंडल की वास्तविक प्रक्रिया को समझेंगे नहीं, तब तक लोकतांत्रिक सहभागिता केवल पुस्तकों तक सीमित रह जाएगी। आज का आयोजन उसी समझ को जीवंत करने की दिशा में बड़ा कदम प्रतीत हुआ।
संसदीय प्रक्रिया ही लोकतंत्र की पहली सीढ़ी
कार्यक्रम की शुरुआत में विधानपरिषद सभापति प्रो. राम शिंदे ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि संसदीय व्यवस्था की प्रक्रिया समझना लोकतंत्र की पहली सीढ़ी है। उन्होंने विधानपरिषद की 100 वर्षों की परंपरा का उल्लेख करते हुए विद्यार्थि5[यों को बताया कि किस प्रकार नियम, प्रक्रियाएँ और अनुशासन किसी भी लोकतांत्रिक संस्थान की रीढ़ होते हैं।
तर्कपूर्ण संवाद और जिज्ञासा को बढ़ावा
विधानसभा अध्यक्ष एड. राहुल नार्वेकर ने विद्यार्थियों से तर्कपूर्ण प्रश्न पूछने की प्रेरणा दी। उनकी दृष्टि यह स्पष्ट करती है कि संसद हो या विधानसभा सत्ता से प्रश्न पूछना किसी भी व्यवस्था को बेहतर बनाता है। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता तभी बढ़ेगी जब हम सही प्रश्न पूछने की आदत को अपनाएँ। एक विद्यार्थी की उत्सुकता ही आगे चलकर नेतृत्व का आधार बनती है। उनके इस कथन से यह साफ हो गया कि विधानमंडल युवाओं को केवल ज्ञान नहीं देना चाहता, बल्कि उन्हें सक्रिय सहभागी बनाने का भी इरादा रखता है।
विविधता में एकता ही भारत का लोकतांत्रिक सहारा
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने संबोधन में भारत की लोकतांत्रिक यात्रा को अत्यंत सशक्त बताया। उन्होंने कहा कि देश विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और विचारों के बावजूद लोकतंत्र को स्थिरता से निभा रहा है। उनके मुताबिक संसदीय समितियाँ, प्रश्नोत्तर काल, चर्चा, नीति निर्माण-ये सभी वह प्रक्रियाएँ हैं, जिन्हें समझे बिना शासन की आत्मा को समझना संभव नहीं।
युवा ही लोकतंत्र के भविष्य के प्रतिनिधि
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस अवसर पर कहा कि युवाओं को संसदीय अध्ययन वर्ग से नेतृत्व की दिशा में प्रेरणा अवश्य मिलेगी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि लोकतंत्र की मशाल आने वाली पीढ़ियाँ ही आगे ले जाएंगी और ऐसे अध्ययन कार्यक्रम उन्हें सही दिशा में प्रशिक्षित करते हैं। उनके शब्दों में उत्साह भी था और जिम्मेदारी का ऊँचा भाव भी। आज की तेज़ गति में युवाओं का राजनीति से दूरी बनाना एक गंभीर विषय रहा है, पर ऐसे कार्यक्रम इस दूरी को पाटने का काम कर रहे हैं—यह बात स्वयं अनुभव करने योग्य थी।
राजनीति में अध्ययन की भूमिका
इस अवसर पर डॉ. नीलम गोर्हे ने राजनीति में अध्ययन, विश्लेषण और निर्णय क्षमता के महत्व पर बल दिया। उन्होंने घोषणा की कि विधानपरिषद के शताब्दी वर्ष से संबंधित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ विद्यार्थियों तक पहुँचाए जाएंगे, जिससे वे विधायी इतिहास को और बेहतर समझ सकें। यह घोषणा इस अध्ययन वर्ग को केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक शैक्षणिक निवेश बना देती है। व्यक्तिगत रूप से, मैंने यह महसूस किया कि वर्तमान समय में युवाओं को राजनीति में दिलचस्पी तो है, पर सही और विश्वसनीय स्रोतों की कमी अक्सर उन्हें सतही समझ तक सीमित रखती है।इस पहल से वह कमी काफी हद तक पूरी हो सकती है।
विद्यार्थियों में दिखीं उत्सुकता
आज के आयोजन में जो सबसे विशेष बात दिखी, वह था विद्यार्थियों का उत्साह। कोई प्रश्न पूछने को उत्सुक था, कोई प्रक्रिया जानने को। यह वातावरण बहुत समय बाद किसी संसदीय मंच में इतने जीवंत रूप में देखने को मिला। यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि ऐसे अध्ययन वर्ग लगातार आयोजित होते रहें, तो आने वाली पीढ़ी का लोकतंत्र के प्रति दृष्टिकोण केवल बेहतर ही नहीं, बल्कि अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनेगा।