नागपुर के राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अमेरिका के सिनसिनाटी विश्वविद्यालय से आई प्रसिद्ध शोधकर्ता प्राध्यापक डॉ. शैलजा पाइक ने बौद्ध धर्म और मानवता के विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर पूरी दुनिया में स्वतंत्रता, समानता और मानवता की स्थापना की जा सकती है।
यह व्याख्यानमाला डॉ. नितिन राऊत अंतरराष्ट्रीय व्याख्यानमाला के नाम से आयोजित की गई थी। कार्यक्रम विश्वविद्यालय के छत्रपति शिवाजी महाराज प्रशासनिक परिसर में स्थित दीक्षांत सभागृह में संपन्न हुआ। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलगुरु डॉ. मनाली क्षीरसागर ने अध्यक्षता की और कार्यक्रम को संबोधित किया।
बौद्ध धर्म और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का दृष्टिकोण
डॉ. शैलजा पाइक ने अपने व्याख्यान में ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, बौद्ध धर्म और भारत में मानवता का प्रश्न’ विषय पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को इसलिए चुना क्योंकि यह धर्म सभी मनुष्यों को समान मानता है। इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है।
डॉ. पाइक ने कहा कि बाबासाहेब आंबेडकर के अनुसार बौद्ध धर्म केवल एक धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है। यह धर्म मानवता को सबसे ऊपर रखता है और सभी को समान अधिकार देने की बात करता है। उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म में करुणा, मैत्री और प्रेम के भाव को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
जाति और अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष
अपने संबोधन में डॉ. पाइक ने जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ डॉ. आंबेडकर के संघर्ष का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब ने अपना पूरा जीवन सामाजिक समानता की स्थापना के लिए समर्पित कर दिया। वे चाहते थे कि समाज में सभी लोगों को बराबर का दर्जा मिले और कोई भी व्यक्ति जन्म के आधार पर छोटा या बड़ा न माना जाए।
डॉ. पाइक ने बताया कि बौद्ध धर्म में जाति व्यवस्था का कोई स्थान नहीं है। यह धर्म केवल मनुष्य की योग्यता और उसके कर्मों को महत्व देता है, न कि उसके जन्म को। इसलिए डॉ. आंबेडकर ने इस धर्म को अपनाया और लाखों लोगों को भी इसकी दीक्षा दी।
लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध आवाज
अमेरिकी शोधकर्ता ने अपने व्याख्यान में लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म में स्त्री और पुरुष को समान माना गया है। इस धर्म में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर सम्मान और अधिकार दिए गए हैं। डॉ. आंबेडकर भी महिला सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने हमेशा महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
डॉ. पाइक ने कहा कि आज भी दुनियाभर में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
शिक्षा का महत्व
डॉ. शैलजा पाइक ने अपने संबोधन में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मानते थे कि शिक्षा ही समाज को बदलने का सबसे बड़ा हथियार है। शिक्षा के बिना किसी भी समाज का विकास संभव नहीं है।
उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म में भी ज्ञान और शिक्षा को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। भगवान बुद्ध ने हमेशा लोगों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़िवादी परंपराओं को छोड़कर तर्क और विवेक के आधार पर जीवन जीने की बात कही।
करुणा, मैत्री और समतामूलक समाज
व्याख्यान में डॉ. पाइक ने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों – करुणा, मैत्री और समतामूलक समाज के निर्माण पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में जब हिंसा, नफरत और असमानता बढ़ रही है, तब बौद्ध धर्म के ये सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
उन्होंने बताया कि करुणा का अर्थ है दूसरों के दुख को समझना और उसे दूर करने का प्रयास करना। मैत्री का अर्थ है सभी के साथ मित्रवत व्यवहार करना। और समतामूलक समाज का अर्थ है ऐसा समाज जहां सभी को समान अवसर और अधिकार मिलें।
कुलगुरु का संबोधन
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की कुलगुरु डॉ. मनाली क्षीरसागर ने मानवता के मूल्यों को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज के समय में बौद्ध धर्म की शिक्षाएं बहुत प्रासंगिक हैं। समाज में शांति, समानता और भाईचारा स्थापित करने के लिए हमें इन मूल्यों को अपनाना होगा।
डॉ. क्षीरसागर ने विद्यार्थियों से कहा कि वे डॉ. आंबेडकर के विचारों को समझें और अपने जीवन में उतारें। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य अच्छा इंसान बनना है।
व्यापक उपस्थिति
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी और आम नागरिक उपस्थित थे। सभी ने डॉ. पाइक के विचारों को बहुत ध्यान से सुना और उनकी सराहना की। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों ने डॉ. पाइक से कई सवाल भी पूछे, जिनका उन्होंने विस्तार से जवाब दिया।
यह व्याख्यानमाला विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और सामाजिक चेतना जगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे कार्यक्रम विद्यार्थियों को न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि उन्हें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा भी देते हैं।
नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह की अंतरराष्ट्रीय व्याख्यानमालाओं का आयोजन करना सराहनीय है। इससे विद्यार्थियों को विश्व स्तर के विद्वानों से सीखने का अवसर मिलता है और उनके ज्ञान में वृद्धि होती है।