जरूर पढ़ें

नागपुर जिले के नरखेड में तीन आदिवासी बच्चों के साथ पुलिस हिरासत में हुई कथित मारपीट, राज्य आयोग ने लिया संज्ञान

Narkhed Tribal Children Case: नागपुर में तीन आदिवासी बच्चों के साथ पुलिस हिरासत में कथित मारपीट का मामला
Narkhed Tribal Children Case: नागपुर में तीन आदिवासी बच्चों के साथ पुलिस हिरासत में कथित मारपीट का मामला (File Photo)
नागपुर जिले के नरखेड तालुका के दिंदरगांव में तीन नाबालिग आदिवासी बच्चों के साथ जलालखेडा पुलिस स्टेशन में कथित मारपीट का गंभीर मामला सामने आया है। महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा लागू की है और विस्तृत जांच के निर्देश दिए हैं।
Updated:

महाराष्ट्र के नागपुर जिले के नरखेड तालुका स्थित दिंदरगांव में हाल ही में घटित एक घटना ने एक बार फिर पुलिस व्यवस्था और मानवाधिकारों के मुद्दे को सामने ला दिया है। तीन नाबालिग आदिवासी बच्चों के साथ जलालखेडा पुलिस स्टेशन में कथित रूप से हुई मारपीट का मामला न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि मानवीयता पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। इस गंभीर मामले का महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने स्वतः संज्ञान लिया है और त्वरित कार्रवाई की शुरुआत की है।

घटना का विवरण और पृष्ठभूमि

स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, दिंदरगांव के तीन नाबालिग आदिवासी बच्चों को जलालखेडा पुलिस स्टेशन के कुछ पुलिस कर्मियों ने हिरासत में लिया। आरोप है कि इन बच्चों को थाने में ले जाकर चमड़े की पट्टी से बेरहमी से पीटा गया। यह घटना अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि इसमें न केवल नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार हुआ बल्कि वे अनुसूचित जनजाति समुदाय से भी संबंध रखते हैं, जो संवैधानिक रूप से संरक्षित वर्ग है।

यह मामला केवल एक स्थानीय घटना नहीं है बल्कि यह पुलिस व्यवस्था में व्याप्त संवेदनहीनता और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करता है। नाबालिग बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार कानूनन अपराध है और जब यह कार्य सुरक्षा प्रदान करने वाली संस्था द्वारा किया जाए तो यह और भी गंभीर हो जाता है।

राज्य आयोग द्वारा उठाए गए कदम

महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत स्वतः संज्ञान लिया है। आयोग के उपाध्यक्ष और सदस्य सचिव स्तर के माननीय अधिवक्ता धर्मपाल मेश्राम ने इस मामले की विस्तृत जांच के निर्देश दिए हैं। आयोग के त्वरित हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप इस प्रकरण में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 की धारा 3(2)(5) लागू की गई है।

यह धारा विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के खिलाफ होने वाले अत्याचार और अपमान के मामलों से निपटने के लिए बनाई गई है। इस धारा का लागू होना दर्शाता है कि आयोग इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रहा है।

जवाबदेही और जांच की मांग

आयोग ने संबंधित पुलिस यंत्रणा और जिला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि घटना की वास्तविक स्थिति की विस्तृत जांच की जाए। आयोग ने यह भी निर्देश दिया है कि जिन पुलिस कर्मियों पर आरोप लगे हैं उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है, इसकी पूरी जानकारी प्रस्तुत की जाए। साथ ही पीड़ित नाबालिग बच्चों की सुरक्षा, उनके उपचार और पुनर्वसन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं, इसका भी विस्तृत प्रतिवेदन मांगा गया है।

यह मांग इस बात को रेखांकित करती है कि आयोग केवल दंडात्मक कार्रवाई पर ही ध्यान नहीं दे रहा बल्कि पीड़ित बच्चों के कल्याण और पुनर्वास पर भी समान रूप से ध्यान दे रहा है। यह एक संतुलित और न्यायसंगत दृष्टिकोण को दर्शाता है।

मानवाधिकारों का उल्लंघन

यह घटना मानवाधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन का मामला है। भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को गरिमा के साथ जीने का अधिकार दिया गया है। नाबालिगों के अधिकार और भी अधिक संरक्षित हैं क्योंकि वे समाज के सबसे कमजोर वर्ग का हिस्सा होते हैं। जब पुलिस जैसी संस्था, जिसका काम नागरिकों की सुरक्षा करना है, स्वयं अत्याचार करने लगे तो यह व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है।

अनुसूचित जनजाति के बच्चों के साथ हुआ यह कथित दुर्व्यवहार सामाजिक न्याय और समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के भी विपरीत है। यह घटना बताती है कि हमारे समाज में अभी भी कमजोर वर्गों के प्रति भेदभाव और असंवेदनशीलता मौजूद है।

आयोग का दृढ़ संकल्प

माननीय अधिवक्ता धर्मपाल मेश्राम ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अनुसूचित जनजाति के नाबालिग बच्चों पर होने वाला कोई भी अन्याय, अत्याचार या अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया है कि आयोग जल्द ही घटनास्थल का प्रत्यक्ष निरीक्षण करेगा और उसके बाद आवश्यक निर्देश जारी किए जाएंगे।

यह दृढ़ संकल्प समाज में एक सकारात्मक संदेश भेजता है कि कानून सभी के लिए समान है और किसी को भी कानून से ऊपर नहीं माना जाएगा, चाहे वह किसी भी पद पर क्यों न हो। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानून के अनुसार कठोर कार्रवाई की जाएगी।

पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रतिबद्धता

आयोग ने यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई है कि पीड़ित बच्चों को पूर्ण न्याय मिले। इसके लिए आयोग निरंतर प्रयास करता रहेगा और हर संभव कदम उठाएगा। यह दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि आयोग केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि जमीनी स्तर पर भी सक्रिय रहेगा।

पीड़ित बच्चों के परिवारों को भी इस पूरी प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा ताकि वे अपनी बात रख सकें और न्याय प्रक्रिया में उनका भरोसा बना रहे।

व्यापक सुधार की आवश्यकता

यह घटना केवल एक अलग मामला नहीं है बल्कि यह पुलिस प्रशिक्षण और जवाबदेही तंत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। पुलिस कर्मियों को मानवाधिकार और संवेदनशीलता का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, विशेषकर जब वे नाबालिगों और संरक्षित वर्गों से निपट रहे हों।

साथ ही, पुलिस स्टेशनों में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए निगरानी तंत्र मजबूत किए जाने चाहिए। सीसीटीवी कैमरे लगाना, शिकायत निवारण तंत्र को सुदृढ़ बनाना और नियमित निरीक्षण जैसे कदम उठाए जाने चाहिए।

यह मामला एक महत्वपूर्ण परीक्षा है कि हमारी न्याय प्रणाली कितनी प्रभावी और संवेदनशील है। आयोग द्वारा उठाए गए त्वरित कदम सराहनीय हैं और उम्मीद है कि इससे पीड़ितों को न्याय मिलेगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

Rashtra Bharat
Rashtra Bharat पर पढ़ें ताज़ा खेल, राजनीति, विश्व, मनोरंजन, धर्म और बिज़नेस की अपडेटेड हिंदी खबरें।

Asfi Shadab

एक लेखक, चिंतक और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता, जो खेल, राजनीति और वित्त की जटिलता को समझते हुए उनके बीच के रिश्तों पर निरंतर शोध और विश्लेषण करते हैं। जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरल, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध।