राज्य के शिक्षा क्षेत्र में शिक्षकों की भारी कमी एक बार फिर सामने आई है। विधायक प्रज्ञा सातव ने विधान परिषद में राज्य के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में प्राध्यापकों की पदभरती को लेकर सवाल उठाया। इस पर उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटील ने जो जानकारी दी, वह चौंकाने वाली है। राज्य भर में हजारों शिक्षक पद खाली पड़े हैं और भर्ती प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है।
अनुदानित महाविद्यालयों में पदों की स्थिति
साल 2018 में राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था। 3 अक्टूबर 2018 के शासन निर्णय के तहत अनुदानित महाविद्यालयों में खाली पड़े पदों में से 40 प्रतिशत यानी 3580 सहायक प्राध्यापक पदों को भरने की मंजूरी दी गई थी। इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है। अब तक 3086 पद भरे जा चुके हैं, लेकिन अभी भी 494 पदों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है।
यह आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने भर्ती की दिशा में कदम तो उठाए हैं, लेकिन रफ्तार उतनी तेज नहीं है जितनी होनी चाहिए। शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में देरी का सीधा असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ता है।
11 हजार से अधिक पद खाली
महाराष्ट्र के अशासकीय अनुदानित महाविद्यालयों में स्थिति और भी गंभीर है। 1 अक्टूबर 2017 की छात्र संख्या के आधार पर जो पद स्वीकृत किए गए थे, उनमें से दिसंबर 2024 के अंत तक सहायक प्राध्यापक संवर्ग के कुल 11,918 पद खाली हैं। यह संख्या बेहद चिंताजनक है।
इन हजारों खाली पदों का मतलब है कि राज्य भर में लाखों छात्र पर्याप्त शिक्षकों के बिना पढ़ाई कर रहे हैं। कक्षाओं में शिक्षकों की कमी से शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है।
वित्त विभाग से मंजूरी की प्रतीक्षा
मंत्री चंद्रकांत पाटील ने बताया कि वर्ष 2018 से 2024 की अवधि में जो पद रिक्त हुए हैं, उनमें से 5012 सहायक प्राध्यापक पदों की भर्ती के लिए वित्त विभाग से मंजूरी मांगी गई है। यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन सवाल यह है कि मंजूरी में कितना समय लगेगा।
शिक्षा विभाग और वित्त विभाग के बीच समन्वय की कमी अक्सर भर्ती प्रक्रिया में देरी का कारण बनती है। ऐसे में जरूरी है कि दोनों विभाग मिलकर तेजी से काम करें।
प्राचार्य पदों पर भी कमी
सहायक प्राध्यापकों के अलावा प्राचार्यों के पदों पर भी भारी कमी है। राज्य के अशासकीय अनुदानित महाविद्यालयों में प्राचार्यों के कुल 1227 स्वीकृत पदों में से केवल 773 पद भरे हुए हैं। इसका मतलब है कि 454 पद खाली पड़े हैं।
प्राचार्य किसी भी शिक्षण संस्थान की रीढ़ होते हैं। उनकी कमी से प्रशासनिक कार्य और शैक्षणिक गुणवत्ता दोनों प्रभावित होते हैं। कई महाविद्यालयों में अतिरिक्त प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है, जो आदर्श स्थिति नहीं है।
सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में भर्ती की स्थिति
राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में भी पदों की कमी बनी हुई है। कुल 1422 रिक्त पदों में से 622 पदों को भरने की स्वीकृति मिल चुकी है। इसके अलावा 422 पदों के लिए वित्त विभाग से मंजूरी का अनुरोध किया गया है।
7 अगस्त 2019 के शासन निर्णय के अनुसार सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में 80 प्रतिशत पद भरने की अनुमति दी गई थी। अब सरकार ने स्वीकृत अध्यापकीय पदों की 85 प्रतिशत सीमा तक भर्ती के लिए वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजा है।
भर्ती प्रक्रिया में तेजी की जरूरत
इन सभी आंकड़ों से साफ है कि राज्य में शिक्षकों की भारी कमी है। हालांकि सरकार ने भर्ती के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन प्रक्रिया की गति बेहद धीमी है। वित्त विभाग से मंजूरी मिलने में समय लगता है और फिर वास्तविक भर्ती प्रक्रिया शुरू होती है।
इस बीच छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है। कम शिक्षकों के कारण कक्षाओं में भीड़ बढ़ जाती है और व्यक्तिगत ध्यान देना मुश्किल हो जाता है। शोध कार्य और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण भी प्रभावित होता है।
समाधान की दिशा में
राज्य सरकार को इस समस्या के तुरंत समाधान की दिशा में काम करना होगा। सबसे पहले वित्त विभाग को जल्द से जल्द मंजूरी देनी चाहिए। इसके बाद भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज बनाने की जरूरत है।
ऑनलाइन आवेदन और डिजिटल साक्षात्कार से प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है। साथ ही, समय-समय पर भर्ती अभियान चलाकर योग्य उम्मीदवारों को आकर्षित करना चाहिए।
शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव
हजारों खाली पदों का सीधा असर महाराष्ट्र में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। राज्य के युवाओं को बेहतर शिक्षा देने के लिए पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षक जरूरी हैं। अगर यह स्थिति जारी रही तो महाराष्ट्र की शैक्षणिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है।
विधायक प्रज्ञा सातव द्वारा उठाया गया यह सवाल बेहद प्रासंगिक है। सदन में इस मुद्दे पर चर्चा होना जरूरी था और अब सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।
राज्य के शिक्षा क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए न केवल पदों की भर्ती बल्कि शिक्षकों के प्रशिक्षण, सुविधाओं में सुधार और वेतन संरचना पर भी ध्यान देना होगा। तभी महाराष्ट्र में शिक्षा का वास्तविक विकास संभव हो सकेगा।