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योगी सरकार का बड़ा फैसला: लखनऊ में तीन राज्यकर अधिकारी निलंबित

Yogi Government: लखनऊ में राज्यकर अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई
Yogi Government: लखनऊ में राज्यकर अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई (File Photo)
योगी सरकार ने लखनऊ विशेष अनुसंधान शाखा राज्यकर में तैनात तीन अधिकारियों - अपर आयुक्त संजय कुमार मिश्र, संयुक्त आयुक्त सुशील कुमार सिंह और उपायुक्त धनश्याम मधेशिया को निलंबित कर दिया है। ये अधिकारी धोखाधड़ी से पांच करोड़ रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट देने के आरोप में निलंबित किए गए हैं। जांच में पाया गया कि बिना माल की आवाजाही के फर्जी ई-वे बिल बनाकर टैक्स क्रेडिट लिया गया। अधिकारियों ने सीसीटीवी फुटेज की जांच नहीं की और कम अर्थदंड लगाकर व्यापारी को अनुचित लाभ पहुंचाया।
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक और बड़ा कदम उठाते हुए लखनऊ में तैनात तीन वरिष्ठ राज्यकर अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई पांच करोड़ रुपये के इनपुट टैक्स क्रेडिट घोटाले में की गई है। इस मामले में अपर आयुक्त, संयुक्त आयुक्त और उपायुक्त सहित तीन अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है।

किन अधिकारियों पर गिरी गाज

लखनऊ की विशेष अनुसंधान शाखा राज्यकर में तैनात अपर आयुक्त संजय कुमार मिश्र, संयुक्त आयुक्त सुशील कुमार सिंह और उपायुक्त धनश्याम मधेशिया को सेवा से निलंबित कर दिया गया है। विशेष सचिव राज्यकर श्याम प्रकाश नरायण ने इस संबंध में औपचारिक आदेश जारी कर दिया है। यह निलंबन धोखाधड़ी से पांच करोड़ रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट देने के गंभीर आरोपों के बाद किया गया है।

घोटाले की पूरी कहानी

इस पूरे मामले की शुरुआत कुछ संदिग्ध ई-वे बिल से हुई। आकाश कार्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली की ओर से गासपेल प्रेस सी-135 निराला नगर लखनऊ के नाम पर पांच ई-वे बिल बनाए गए। इन बिलों में चार वाहन नंबर शामिल थे – यूपी 82-टी 9714, एचआर-63 ई 9906, एसआर 38-टी 9341 और पीबी-10 वी 5297।

खास बात यह है कि ये सभी ई-वे बिल बिना किसी माल की आवाजाही के केवल इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने के लिए बनाए गए थे। शिपमेंट का पता गासपेल प्रेस नादरगंज अमौसी, लखनऊ दिखाया गया था। यह एक सुनियोजित धोखाधड़ी थी जिसमें कागजों पर तो माल की आवाजाही दिखाई गई लेकिन वास्तव में कोई माल कहीं नहीं गया।

अधिकारियों की लापरवाही के सबूत

जांच में सामने आया कि इन तीनों अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया। सबसे पहले तो इन्होंने इतने बड़े घोटाले के बावजूद किसी भी प्रकार की एफआईआर दर्ज नहीं कराई। ट्रांसपोर्टर, वाहन मालिकों और उनके चालकों के खिलाफ भी कोई अर्थदंड की कार्रवाई नहीं की गई। यह साफ तौर पर उनकी मिलीभगत को दर्शाता है।

सीसीटीवी फुटेज की अनदेखी

विशेष अनुसंधान शाखा द्वारा जांच और तलाशी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण सबूत यानी फैक्ट्री गेट के सीसीटीवी फुटेज की मांग ही नहीं की गई। यह फुटेज साबित कर सकता था कि वास्तव में कोई वाहन फैक्ट्री में आया भी था या नहीं। लेकिन अधिकारियों ने न तो व्यापारी से यह फुटेज मांगा और न ही अपनी रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र किया।

गेट रजिस्टर की जांच में खामी

तलाशी के समय अधिकारियों ने माल आने के गेट रजिस्टर में इन चारों वाहनों की एंट्री की जांच नहीं की। हालांकि जांच में पाया गया कि अधिकारियों ने रजिस्टर तो प्राप्त किया था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर इसकी जांच नहीं की। इसके बजाय उन्होंने अपनी रिपोर्ट में व्यापारी का यह कथन डाल दिया कि चारों वाहनों का माल फैक्ट्री में आया है।

अधिकारियों ने व्यापारी से न तो उस माल को फैक्ट्री परिसर में दिखाने के लिए कहा और न ही गेट रजिस्टर से मिलान कराने को कहा। यह स्पष्ट रूप से व्यापारी को अनुचित लाभ पहुंचाने की नीयत को दर्शाता है।

भौतिक सत्यापन में गड़बड़ी

तलाशी के समय भौतिक सत्यापन शीट पर मूल्यांकन का कोई ठोस आधार नहीं दिया गया। यह व्यापारी को अनुचित लाभ पहुंचाने की साजिश का हिस्सा था। सत्यापन और मूल्यांकन के बाद स्टाक रजिस्टर के अभाव में भी 3 करोड़ 57 लाख 24 हजार रुपये का स्टाक सही मान लिया गया।

इस पूरे स्टाक पर केवल 44.87 लाख रुपये का अर्थदंड लगाया गया, जो बेहद कम था। नियमों के अनुसार माल की लागत के बराबर जुर्माना लगाया जाना चाहिए था, लेकिन केवल टैक्स के बराबर जुर्माना लगाया गया। इससे व्यापारी को करोड़ों रुपये का फायदा हुआ।

पांच करोड़ रुपये का नुकसान

रिपोर्ट में बताया गया कि व्यापारी द्वारा अर्थदंड जमा करने के बाद माल को छोड़ दिया गया। लेकिन असलियत में कोई माल था ही नहीं। इस कपटपूर्ण तरीके से व्यापारी ने पांच करोड़ रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट हासिल कर लिया। यह सरकारी खजाने को सीधे तौर पर हुआ नुकसान था।

योगी सरकार का सख्त रुख

उत्तर प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई हुई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बार-बार स्पष्ट किया है कि चाहे कोई भी अधिकारी हो, अगर वह भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। इसी नीति के तहत इन तीनों अधिकारियों को तुरंत निलंबित कर दिया गया।

राज्यकर विभाग में सुधार की जरूरत

यह मामला राज्यकर विभाग में व्याप्त खामियों को उजागर करता है। इनपुट टैक्स क्रेडिट के नाम पर हो रहे घोटालों पर लगाम लगाने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र की जरूरत है। ई-वे बिल की वास्तविकता जांचने के लिए सीसीटीवी फुटेज, जीपीएस ट्रैकिंग और भौतिक सत्यापन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।

आगे की कार्रवाई

निलंबन के बाद अब इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जाएगी। जांच में अगर ये दोषी पाए जाते हैं तो इन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही इस पूरे घोटाले में शामिल अन्य लोगों की भी पहचान की जा रही है। व्यापारी और ट्रांसपोर्टर के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

यह मामला दिखाता है कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक फैला हुआ है। लेकिन योगी सरकार की सख्ती से यह भी संदेश जाता है कि अब भ्रष्ट अधिकारियों के लिए कोई जगह नहीं है। जनता का पैसा बचाने और ईमानदार प्रशासन देने के लिए ऐसी कार्रवाइयां जरूरी हैं।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.