बारासात में आयोजित एक कार्यक्रम में तिलोत्तमा की माँ ने दिल का दर्द सबके सामने रख दिया। उनकी आवाज में पीड़ा थी, गुस्सा था और न्याय की तड़प थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अब उनके पास कुछ चाहने को नहीं बचा है। बस एक ही चाह है – बेटी के लिए इंसाफ। और अगर कानूनी रास्ते से न्याय नहीं मिला तो वे कानून खुद अपने हाथों में लेने को मजबूर हो जाएंगे। यह केवल एक भावनात्मक बयान नहीं था, बल्कि एक पीड़ित परिवार की हताशा और व्यवस्था पर से उठते विश्वास का संकेत था।
सीबीआई अधिकारी ने नहीं की खुद जांच
तिलोत्तमा के पिता ने गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि सीबीआई के जांच अधिकारी ने अदालत में यह स्वीकार किया है कि उन्होंने खुद कोई जांच नहीं की। यह बात सुनकर परिवार स्तब्ध रह गया। अगर जांच अधिकारी ने खुद जांच नहीं की, तो फिर उन्होंने किया क्या? यह सवाल अब पूरे मामले में एक नया मोड़ ले आया है। पिता ने कहा कि काफी समय से यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। उन्होंने भरोसा जताया कि वे अदालत में इस सवाल को जरूर उठाएंगे कि आखिर सीबीआई अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई।
संजय के अलावा अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग
परिवार की मांग बिल्कुल साफ है। वे चाहते हैं कि केवल संजय ही नहीं, बल्कि इस घिनौने अपराध में शामिल सभी लोगों को गिरफ्तार किया जाए। उनका कहना है कि यह केवल एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकता। इस पूरे मामले में और भी लोग शामिल हैं जिन्हें सामने लाया जाना चाहिए। परिवार का मानना है कि जब तक सभी दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक उन्हें शांति नहीं मिलेगी। तिलोत्तमा की आत्मा तब तक चैन से नहीं रह सकती जब तक उसके साथ जो अन्याय हुआ है, उसका पूरा हिसाब नहीं हो जाता।
संदीप घोष पर गंभीर आरोप
तिलोत्तमा के माता-पिता का यह दृढ़ विश्वास है कि संदीप घोष इस हत्या और बलात्कार के मामले में गहराई से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि संदीप घोष की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। परिवार चाहता है कि जांच एजेंसियां इस पहलू पर गंभीरता से ध्यान दें और संदीप घोष से जुड़े सभी सबूतों को सामने लाएं। उनका आरोप है कि घोष की भागीदारी को छुपाने की कोशिश की जा रही है और यही कारण है कि जांच सही दिशा में नहीं बढ़ पा रही है।
न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान
इस पूरे मामले ने न्याय व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक पीड़ित परिवार जब यह कहने पर मजबूर हो जाए कि उन्हें कानून खुद अपने हाथ में लेना पड़ेगा, तो यह व्यवस्था की विफलता का संकेत है। लोगों का भरोसा तभी बना रहता है जब उन्हें समय पर न्याय मिले। लेकिन जब महीनों और सालों तक मामले अदालतों में लटके रहते हैं और कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता, तो लोगों का धैर्य टूटने लगता है। तिलोत्तमा का मामला भी इसी तरह की व्यवस्थागत विफलता का उदाहरण बनता जा रहा है।
परिवार की पीड़ा और समाज की जिम्मेदारी
एक बेटी को खोने का दर्द किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बड़ा दर्द होता है। लेकिन जब वह बेटी किसी अपराध का शिकार हो और न्याय भी न मिले, तो वह पीड़ा और भी गहरी हो जाती है। तिलोत्तमा के माता-पिता दिन-रात इसी पीड़ा में जी रहे हैं। वे हर दिन अदालत के चक्कर लगा रहे हैं, मीडिया से बात कर रहे हैं, लोगों से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि समाज और व्यवस्था कब तक उनकी आवाज सुनेगी। यह केवल एक परिवार का मामला नहीं है, बल्कि यह समाज की सुरक्षा और न्याय की गरिमा का सवाल है।
जांच में देरी और उसके कारण
जांच में देरी के कई कारण हो सकते हैं। कभी सबूतों की कमी, कभी गवाहों का सहयोग न मिलना, कभी प्रशासनिक लापरवाही, और कभी राजनीतिक दबाव। लेकिन जो भी कारण हो, पीड़ित परिवार के लिए हर गुजरता दिन एक नई यातना लेकर आता है। तिलोत्तमा के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। सीबीआई को मामले की जांच सौंपी गई थी, लेकिन अब खुद जांच अधिकारी के बयान ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। यह चिंताजनक है कि जांच एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हैं।
हाईकोर्ट में क्या हो रहा है
मामला लंबे समय से हाईकोर्ट में चल रहा है। परिवार की ओर से वकील लगातार पैरवी कर रहे हैं। अदालत ने कई बार सुनवाई की है, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। परिवार को उम्मीद है कि हाईकोर्ट उनकी आवाज सुनेगी और सीबीआई की कार्यवाही पर सवाल उठाएगी। उन्हें भरोसा है कि न्यायपालिका उनके साथ खड़ी होगी और सच्चाई सामने आएगी।
समाज को जागरूक होना जरूरी
तिलोत्तमा का मामला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, यह एक सामाजिक मुद्दा भी है। हर दिन देश में कई ऐसे मामले होते हैं जहां पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिल पाता। समाज को इन मामलों में आवाज उठानी चाहिए। मीडिया, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी पीड़ित अकेला न रह जाए। तिलोत्तमा के परिवार को इस वक्त समाज के समर्थन की सख्त जरूरत है।
तिलोत्तमा की माँ का बयान एक चेतावनी है। यह व्यवस्था के लिए आखिरी चेतावनी हो सकती है। अगर समय रहते न्याय नहीं मिला, तो लोगों का भरोसा व्यवस्था से पूरी तरह उठ जाएगा। और जब लोग कानून को अपने हाथ में लेने की बात करने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि व्यवस्था विफल हो चुकी है। तिलोत्तमा के मामले में जल्द से जल्द सभी दोषियों को सामने लाना और उन्हें सख्त सजा देना ही एकमात्र रास्ता है। तभी परिवार को शांति मिलेगी और समाज में न्याय की गरिमा बची रहेगी।