अफगान विदेश मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस और विवाद
नई दिल्ली। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को शामिल न करने के मामले ने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दिया है। इस घटना पर सोशल मीडिया पर गहरा आक्रोश देखने को मिला। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे भारत की महिला पत्रकारों के अपमान के रूप में देखा।
विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण
विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्ट किया कि दिल्ली में आयोजित यह प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरी तरह अफगान दूतावास द्वारा आयोजित की गई थी और इसमें भारत सरकार या विदेश मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं थी। मंत्रालय ने यह भी कहा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर और मुत्तकी के बीच कोई संयुक्त प्रेस वार्ता आयोजित नहीं की गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस केवल अफगानिस्तान के दूतावास परिसर में आयोजित की गई, जिसमें केवल चुनिंदा पुरुष पत्रकार और अफगान दूतावास के अधिकारी ही शामिल हुए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठाए गए मुद्दे
मुत्तकी ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत-अफगानिस्तान संबंधों, मानवीय सहायता, व्यापार मार्गों और सुरक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने विचार रखे। हालाँकि, महिला पत्रकारों की उपस्थिति प्रतिबंधित होने से इस कार्यक्रम पर विवाद छा गया।
तालिबान शासन और महिला अधिकार संकट
अगस्त 2021 में सत्ता संभालने वाले तालिबान 2.0 शासन के तहत अफगान महिलाओं और लड़कियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया में सबसे गंभीर महिला अधिकार संकट का सामना करना पड़ रहा है। तालिबान के नियमों के कारण महिलाएँ सार्वजनिक जीवन से लगभग गायब हो गई हैं। यही कारण है कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल न करने के फैसले ने अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना को जन्म दिया।
भारत में राजनीतिक प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस घटना पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। उन्होंने इसे “भारत की महिला पत्रकारों का अपमान” बताया और कहा कि यदि महिलाओं के अधिकारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता केवल चुनावी उद्देश्यों के लिए दिखावा है, तो यह घटना अस्वीकार्य है।
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी कहा कि यदि महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया है, तो पुरुष पत्रकारों को भी उस समय बाहर जाना चाहिए था। उन्होंने इसे पत्रकारिता और महिला अधिकारों दोनों के दृष्टिकोण से अनुचित बताया।
विदेश मंत्रालय की स्थिति
विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि अफगान दूतावास की प्रेस कॉन्फ्रेंस के आयोजन या प्रबंधन में मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं थी। महिला पत्रकारों को शामिल न करने के विवाद से खुद को मंत्रालय ने पूरी तरह अलग कर लिया है।
सार्वजनिक और मीडिया की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर भारी प्रतिक्रिया देखने को मिली। कई पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अफगान दूतावास की इस कार्रवाई की निंदा की और महिला अधिकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए। पत्रकारिता जगत ने इसे लैंगिक असमानता के खिलाफ चेतावनी के रूप में देखा।
भविष्य की संभावना
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिला पत्रकारिता और लैंगिक समानता के मुद्दे को लेकर सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सतर्कता आवश्यक है। भारत सरकार ने स्थिति को स्पष्ट कर दिया है, लेकिन महिला पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा और सुनिश्चितता पर अब भी व्यापक चर्चा जारी रहेगी।