दुनिया भर में निवेश की रणनीतियाँ बदल रही हैं — और इसी बदलाव की धारा में अब चाँदी (Silver) सबसे चमकदार धातु बनकर उभरी है।
9 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिल्वर की कीमत पहली बार $51.30 प्रति औंस तक पहुँची, जबकि भारत में यह ₹1.63 लाख प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँची — यानी जनवरी से अब तक 72% की छलांग।
लेकिन यह सिर्फ़ कीमतों की कहानी नहीं है।
यह एक वैश्विक संपत्ति आवंटन (Global Asset Allocation) का रीसेट है — एक ऐसा बदलाव जो निवेश की पूरी परिभाषा बदल सकता है।
“यह महज़ स्पेक्युलेशन नहीं, एक ग्लोबल रीस्ट्रक्चरिंग है” — विक्रम धवन
निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड के हेड ऑफ कमोडिटीज़, विक्रम धवन, मानते हैं कि यह उछाल किसी अल्पकालिक भावनात्मक प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं है।
“दुनिया भर में निवेशक और संस्थान अपनी पोर्टफोलियो रणनीतियाँ बदल रहे हैं।
अमेरिकी डॉलर से दूर विविधीकरण पहले केंद्रीय बैंकों ने शुरू किया,
और अब यही रुझान निजी व संस्थागत निवेश में भी दिख रहा है,”
— विक्रम धवन, निप्पॉन इंडिया एमएफ
उनके अनुसार, “ग्रीन टेक्नोलॉजी की मांग” और लॉन्ग-टर्म सप्लाई डेफिसिट (दीर्घकालिक आपूर्ति की कमी) ने सिल्वर को नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया है।
जब बेंचमार्क भरोसेमंद नहीं रहा
धवन का मानना है कि अब लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) की कीमतें असली मार्केट वैल्यू को दर्शा नहीं रहीं।
“न्यूयॉर्क और लंदन के दामों में अभी 4-5% का अंतर है।
शंघाई, दुबई या सिंगापुर — हर जगह प्रीमियम पर ट्रेडिंग हो रही है।
LBMA बेंचमार्क अब टूटा हुआ है। कोई भी उस भाव पर असली सिल्वर नहीं खरीद रहा,”
— विक्रम धवन
दूसरे शब्दों में — अब बाजार भौतिक मांग और आपूर्ति से संचालित हो रहा है, न कि केवल एक्सचेंजों पर तय आंकड़ों से।
भारत के ETF निवेशक क्या समझें?
भारत में सिल्वर ETF की बढ़ती कीमतों और 12% तक के प्रीमियम ने निवेशकों को हैरान किया है।
लेकिन धवन ने इसे “स्वाभाविक परावर्तन” कहा — कोई विकृति नहीं।
“भारतीय सिल्वर ETF बाज़ार बहुत छोटा है।
हम कीमत तय करने वाले नहीं, बल्कि कीमत ग्रहण करने वाले हैं।
हम तो बस संदेशवाहक हैं,”
— विक्रम धवन
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक भारत के फिजिकल और ETF मार्केट में कोई बड़ा विचलन नहीं है, तब तक चिंता की कोई बात नहीं।
सिल्वर की मांग और औद्योगिक भविष्य
पिछले कुछ वर्षों में सिल्वर की मांग केवल आभूषणों तक सीमित नहीं रही।
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सोलर पैनल,
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इलेक्ट्रिक व्हीकल्स,
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ग्रीन एनर्जी कंपोनेंट्स
— इन सभी में सिल्वर का उपयोग तेजी से बढ़ा है।
ICRA की एक हालिया रिपोर्ट भी बताती है कि सिल्वर का आपूर्ति घाटा कई वर्षों से बना हुआ है, और यह अब स्ट्रक्चरल डेफिसिट बन चुका है।
निवेशक दृष्टिकोण: यह “सुधार” नहीं, “रीसेट” है
धवन का निष्कर्ष स्पष्ट है —
“जब तक यह वैश्विक एसेट एलोकेशन रीसेट पूरा नहीं होता, सिल्वर की अस्थिरता और बेहतर प्रदर्शन जारी रहेगा।”
यानी आने वाले महीनों में चाँदी की कीमतें केवल एक “कमोडिटी मूवमेंट” नहीं रहेंगी, बल्कि यह दुनिया की वित्तीय संरचना में चल रहे बड़े बदलाव का प्रतिबिंब होंगी।
सिल्वर अब “पारंपरिक कीमती धातु” नहीं रही।
यह आज वैश्विक विश्वास और निवेश के संतुलन का नया प्रतीक बन चुकी है।
जहाँ गोल्ड “सुरक्षा” का संकेत है, वहीं सिल्वर अब “संक्रमण” — एक नए आर्थिक युग की ओर इशारा कर रही है।
डिस्क्लेमर:
यह आर्टिकल केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी निवेश सलाह, वित्तीय सलाह या व्यापारिक निर्णय के लिए नहीं है। चांदी की कीमतें बाजार में लगातार बदलती रहती हैं और यहां दी गई जानकारी वर्तमान समय की कीमतों पर आधारित हो सकती है। निवेश करने से पहले किसी योग्य वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य करें।