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मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई बोले — संविधान ने एक दलित परिवार से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने का रास्ता बनाया

Chief Justice B.R. Gavai Credits Constitution for Rise | बी.आर. गवई बोले – संविधान ने दलित परिवार से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया
Chief Justice B.R. Gavai Credits Constitution for Rise | बी.आर. गवई बोले – संविधान ने दलित परिवार से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया (File Photo)
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मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई बोले — “संविधान ने मुझे दलित परिवार से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया”

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जो सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं, ने अपने जीवन के सफर और भारतीय संविधान की भूमिका पर भावुकता से बातें कीं।
उन्होंने कहा कि यदि डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान न होता, तो शायद आज वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पद तक नहीं पहुंच पाते।


महाराष्ट्र के रत्नागिरी और वियतनाम में दिया संबोधन

मुख्य न्यायाधीश गवई ने 12 अक्टूबर को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में और 11 अक्टूबर को वियतनाम में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में संबोधन देते हुए कहा कि भारत आज भी सामाजिक और धार्मिक विविधताओं के बावजूद स्थिर और प्रगतिशील है — और इसका श्रेय संविधान की समानता और न्याय की भावना को जाता है।

उन्होंने कहा,

“मैं एक साधारण दलित परिवार से हूं। अगर संविधान ने हमें समान अधिकार और अवसर नहीं दिए होते, तो आज मैं यहां नहीं होता। भारत आज भी स्थिर है क्योंकि हमने डॉ. अंबेडकर के संविधान को आत्मसात किया है।”


विविधता, समावेश और न्याय की अपील

गवई ने अपने भाषण में न्यायपालिका और विधि समाज से आग्रह किया कि वे समाज के वंचित, दलित, आदिवासी और कमजोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में और ठोस कदम उठाएं।
उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली को विविधता (Diversity), समावेश (Inclusion) और न्याय (Justice) की त्रयी को हर स्तर पर लागू करना चाहिए।


डॉ. अंबेडकर का संदर्भ और प्रेरणा

गवई ने डॉ. अंबेडकर को अपना प्रेरणास्रोत बताते हुए कहा कि उनकी सोच ने न केवल भारत का संविधान गढ़ा, बल्कि करोड़ों लोगों को समान अवसर और आत्म-सम्मान का मार्ग भी दिखाया।
उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र की असली ताकत संवैधानिक मूल्यों की निरंतरता में है।


संवैधानिक फैसलों का उल्लेख

अपने वक्तव्य में उन्होंने अपनी कुछ ऐतिहासिक न्यायिक निर्णयों का भी उल्लेख किया, जिनमें उन्होंने आरक्षण (Affirmative Action) से जुड़े मामलों में न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाया।
गवई ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने राहुल गांधी की मानहानि सजा पर रोक लगाने वाले निर्णय में हिस्सा लिया था, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।


वियतनाम सम्मेलन में भारत की प्रशंसा

वियतनाम में आयोजित सम्मेलन में उन्होंने कहा कि भारत ने अपने संविधान के बल पर क्षेत्रीय संघर्षों और वैश्विक अस्थिरता के बीच भी स्थिरता बनाए रखी है
उन्होंने कहा,

“जहां कई देश आंतरिक संघर्षों से जूझ रहे हैं, वहीं भारत ने संविधान के प्रति सम्मान और सामाजिक संतुलन के माध्यम से स्थायित्व कायम रखा है।”


समावेशी न्यायपालिका की दिशा में संदेश

गवई ने कहा कि आने वाले समय में भारतीय न्यायपालिका को और अधिक समावेशी (inclusive) बनाना होगा — जिसमें सभी वर्गों और समुदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।
उन्होंने कहा कि “जब न्यायपालिका में हर तबके की आवाज होगी, तभी न्याय सच्चे अर्थों में ‘जन न्याय’ कहलाएगा।”

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई का यह वक्तव्य न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष और उपलब्धियों का प्रमाण है, बल्कि यह भारतीय संविधान की समानता और न्याय की भावना का भी सशक्त संदेश है।
उनकी यह टिप्पणी याद दिलाती है कि भारत की ताकत उसके संविधान में निहित है — जो हर नागरिक को यह विश्वास देता है कि “जाति नहीं, योग्यता ही पहचान है।”


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Aryan Ambastha

Writer & Thinker | Finance & Emerging Tech Enthusiast | Politics & News Analyst | Content Creator. Nalanda University Graduate with a passion for exploring the intersections of technology, finance, Politics and society. | Email: aryan.ambastha@rashtrabharat.com