बिहार में चिराग पासवान का राजनीतिक उभार
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम सामने आने के पश्चात् लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान का राजनीतिक कद और दृढ़ हो गया है। 29 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए उनकी पार्टी ने 19 सीटों पर विजय प्राप्त की और एनडीए गठबंधन को 200 सीटों के पार ले जाने में अहम भूमिका निभाई। इस जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि चिराग पासवान बिहार में दलित नेतृत्व के नए प्रतीक बन चुके हैं।
महागठबंधन से हुई कुशल प्रतिस्पर्धा
चिराग की पार्टी ने महागठबंधन से 17 सीटें छीनी हैं। यह आंकड़ा उनके रणनीतिक कौशल और जनसमर्थन की पुष्टि करता है। उम्मीदवार चयन को लेकर आंतरिक असंतोष के बावजूद उन्होंने अपनी पार्टी की ताकत साबित की है। उनके इस प्रदर्शन ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में नई दिशा प्रदान की है।
लोकसभा में लगातार सफलता
चिराग पासवान का राजनीतिक प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनावों में भी दिखाई दिया। उनकी पार्टी ने अपने लड़े गए सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की। इससे स्पष्ट हुआ कि उनके नेतृत्व में दलित और मध्यम वर्ग के मतदाता एनडीए के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं।
राजनीतिक विरासत और परिवार की भूमिका
चिराग पासवान का राजनीतिक सफर उनके पिता रामविलास पासवान की विरासत से जुड़ा है। उनके चाचा पशुपति कुमार पारस की मौजूदगी के बावजूद चिराग ने स्वतंत्र और प्रभावशाली पहचान बनाई है। बिहार के दलित नेता के रूप में उनका उदय अन्य वरिष्ठ नेताओं के समय की तुलना में नया और ऊर्जावान प्रतीत होता है।
प्रारंभिक जीवन और फिल्मी पृष्ठभूमि
राजनीति में आने से पूर्व चिराग पासवान ने बॉलीवुड में भी कदम रखा था। 2011 में उन्होंने ‘मिले ना मिले हम’ फिल्म से अभिनय की दुनिया में प्रवेश किया। इस अनुभव ने उनके व्यक्तित्व में लोकप्रियता और संचार कौशल विकसित किया। इसके पश्चात् उन्होंने अपने पिता को एनडीए गठबंधन में शामिल होने के लिए राजी किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में जमुई से सांसद बने।
2030 में मुख्यमंत्री की संभावना
42 वर्षीय चिराग पासवान 2030 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनकी रणनीति, जनसमर्थन और राजनीतिक अनुभव उन्हें इस संभावना के लिए तैयार करता है। बिहार में दलित नेतृत्व की नई दिशा में उनका योगदान उल्लेखनीय माना जा रहा है।
चिराग पासवान ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता, रणनीति और जनता के बीच लोकप्रियता ने उन्हें बिहार की राजनीति में नई पहचान दी है। 2030 के चुनाव तक उनकी भूमिका और भी निर्णायक होने की संभावना है।