तेजस्वी की चुप्पी क्यों बढ़ा रही सियासी हलचल? RJD में मचे घमासान की अंदरूनी कहानी

Tejashwi Yadav Silence: तेजस्वी यादव की चुप्पी और राजद में अंदरूनी संकट की Inside Story
Tejashwi Yadav Silence: तेजस्वी यादव की चुप्पी और राजद में अंदरूनी संकट की Inside Story (Photo: IANS)
बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद तेजस्वी यादव और कांग्रेस की चुप्पी चर्चा में है। राजद में टिकट वितरण विवाद और अंदरूनी असंतोष बढ़ा है। कांग्रेस में भी गुटबाजी उभरी है। महागठबंधन की संरचना में ढीलापन और नेतृत्व संकट स्पष्ट दिख रहा है।Retry
नवम्बर 18, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद महागठबंधन के घटक दलों की चुप्पी ने राज्य की सियासत में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। चार दिन बीत जाने के बाद भी न तेजस्वी यादव सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं और न ही कांग्रेस की ओर से कोई ठोस बयान दिया गया है। यह मौन सिर्फ पराजय का असर नहीं, बल्कि गठबंधन के भीतर बढ़ती खींचतान, नेतृत्व की उलझन और आगे की रणनीति पर गहराते संशय का संकेत माना जा रहा है।

तेजस्वी यादव की खामोशी के पीछे क्या है कारण

राजद की ओर से सबसे ज्यादा चर्चा तेजस्वी यादव की चुप्पी को लेकर हो रही है। चुनाव प्रचार के दौरान वे महागठबंधन के सबसे सक्रिय और प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे थे। उनकी रैलियां, भाषण और जनसंपर्क अभियान चर्चा में रहे, लेकिन भाजपा-जदयू के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की भारी जीत ने उनकी राजनीतिक रणनीति, टीम चयन और सलाहकार मंडली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राजद के भीतर असंतोष बढ़ता जा रहा है। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि टिकट वितरण में गंभीर गड़बड़ी हुई। कई योग्य और जमीनी नेताओं को नजरअंदाज किया गया, जबकि कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट मिला जिनकी जमीनी पकड़ कमजोर थी। इसके अलावा चुनाव प्रचार की रणनीति भी जमीनी सच्चाइयों से कटी हुई थी, जिसका खामियाजा पूरे गठबंधन को भुगतना पड़ा।

ऐसे माहौल में तेजस्वी यादव की चुप्पी यह दर्शाती है कि वे इस समय दबाव में हैं। बिना किसी ठोस समीक्षा और आत्ममंथन के वे मीडिया या जनता के सामने आने से बच रहे हैं। एक दिन पहले उन्होंने विधायक दल की बैठक जरूर बुलाई, लेकिन उस बैठक में भी मीडिया को शामिल नहीं किया गया। यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी अंदरूनी मसलों को सुलझाने में जुटी है और सार्वजनिक बयानबाजी से बचना चाहती है।

कांग्रेस में भी अंदरूनी कलह की आहट

महागठबंधन में कांग्रेस की स्थिति और भी ज्यादा नाजुक दिखाई दे रही है। चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने 30 से अधिक हाई-प्रोफाइल प्रचारकों को बिहार भेजा था, लेकिन परिणाम अत्यंत निराशाजनक रहे। कांग्रेस को उम्मीद से बेहद कम सीटें मिलीं और पार्टी का वोट शेयर भी घटा। हार के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने न तो कोई सामूहिक बैठक बुलाई है और न ही किसी आधिकारिक समीक्षा की प्रक्रिया शुरू की है।

कांग्रेस के भीतर टिकट वितरण को लेकर विवाद काफी समय से चल रहा है। कई स्थानीय नेताओं ने टिकट बंटवारे में पक्षपात और गुटबाजी की शिकायतें की थीं। इसके अलावा प्रदेश नेतृत्व की कमजोरी और दिशाहीनता भी एक बड़ा कारण मानी जा रही है। हार के बाद पार्टी के अंदर दो गुट साफ तौर पर सामने आ गए हैं, जिससे आगे की रणनीति तय करना और मुश्किल हो गया है।

वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी ने दी प्रतिक्रिया

महागठबंधन के अन्य घटक दलों में वाम दल और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ही ऐसे दल हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंच से हार को स्वीकार किया है। इन दलों ने अपनी गलतियों को माना और आत्मसमीक्षा की बात कही है। हालांकि इन दलों की सीटें भी सीमित थीं, लेकिन उनकी पारदर्शिता ने उन्हें राजनीतिक रूप से थोड़ी राहत दी है।

गठबंधन की संरचना में ढीलापन

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महागठबंधन की चुप्पी का सबसे बड़ा कारण गठबंधन की संरचना में ढीलापन है। हार के बाद आमतौर पर घटक दल मिलकर संयुक्त बयान जारी करते हैं, साझी समीक्षा बैठक बुलाते हैं और आगे की राजनीतिक दिशा तय करते हैं। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। न कोई साझी बैठक हुई, न कोई संयुक्त रणनीति बनी।

यह स्थिति स्पष्ट करती है कि घटक दल परिणामों की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने से पहले अपने-अपने राजनीतिक हिसाब-किताब दुरुस्त करने में व्यस्त हैं। हर दल अपनी गलतियों का विश्लेषण कर रहा है और भविष्य की रणनीति बनाने में जुटा है। इस दौरान सार्वजनिक बयान देने से बचा जा रहा है ताकि किसी तरह की अटकलों या विवादों से बचा जा सके।

क्या होगा महागठबंधन का भविष्य

इस खामोशी ने महागठबंधन के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह गठबंधन आगे भी साथ रहेगा या फिर हर दल अपना रास्ता अलग करेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी जितनी लंबी होगी, अटकलों का बाजार उतना ही गर्म होता जाएगा। बिहार की राजनीति में अगले कुछ दिन बेहद अहम होने वाले हैं, क्योंकि इसी दौरान महागठबंधन की असली तस्वीर साफ होगी।


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