लोकसभा में वंदे मातरम् को लेकर चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् के विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इस चर्चा के दौरान इतिहास, स्वतंत्रता आंदोलन और उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि वह भावना थी जिसने देश को एक साथ जोड़ा। उन्होंने दावा किया कि आजादी से पहले कई ऐसे निर्णय लिए गए, जिनका असर देश की एकता और जनता के मन पर पड़ा।
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक महत्व
प्रधानमंत्री ने बताया कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् को केवल एक गीत के रूप में नहीं, बल्कि एक भाव के रूप में रचा था। यह उस दौर का समय था, जब अंग्रेज भारत को बांटने की कोशिश कर रहे थे। अंग्रेज शासन को यह समझ आ गया था कि इस गीत ने देश के लोगों में एकजुटता की भावना को मजबूत किया है। इसलिए, अंग्रेज सरकार ने वंदे मातरम् पर कठोर पाबंदियां लगाने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों ने इस गीत को गाने पर सजा दी, इसे छापने पर सजा दी, और वंदे मातरम् बोलने पर भी सजा दी जाती थी। उन्होंने कहा कि अगर एक गीत को इस तरह रोका जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि उसका प्रभाव कितना गहरा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् ने जन-मानस को नई शक्ति दी और स्वतंत्रता आंदोलन को तेज किया।
लोकसभा में प्रधानमंत्री और टीएमसी सांसद के बीच संवाद
चर्चा के दौरान एक रोचक घटना भी हुई। जब प्रधानमंत्री ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को बंकिम दा कहकर संबोधित किया, तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने उन्हें टोका। उन्होंने कहा कि बंकिम बाबू कहना चाहिए। इस पर प्रधानमंत्री ने हंसकर जवाब दिया और कहा कि वे बंकिम बाबू ही कहेंगे, और उन्होंने सांसद की भावनाओं का सम्मान भी किया। उन्होंने हल्के अंदाज में कहा कि वे सांसद को दादा भी कह सकते हैं। इस तरह सदन में कुछ पल हल्की मुस्कान के भी रहे।
Speaking in the Lok Sabha. https://t.co/qYnac5iCTB
— Narendra Modi (@narendramodi) December 8, 2025
वंदे मातरम् पर पुराने राजनीतिक निर्णय
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में यह दावा भी किया कि कांग्रेस ने अतीत में वंदे मातरम् के मुद्दे पर समझौता किया। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए, मुस्लिम लीग के दबाव के कारण वंदे मातरम् के हिस्से अलग किए गए। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस उस समय मजबूती से खड़ी रहती, तो देश को यह विभाजनकारी स्थिति नहीं झेलनी पड़ती।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन्ना के विरोध के बाद कांग्रेस द्वारा किए गए निर्णयों ने देश की राजनीति को प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नेहरू द्वारा लिखे गए पत्र में यह बात कही गई थी कि वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि मुसलमानों को परेशान कर सकती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह निर्णय सामाजिक सद्भाव के नाम पर लिया गया, लेकिन वास्तव में यह मुस्लिम लीग के दबाव के कारण हुआ।
आपातकाल और वंदे मातरम् की भूमिका
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में आपातकाल का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब देश पर आपातकाल थोपा गया और संवैधानिक अधिकारों को दबाया गया, तब भी वंदे मातरम् देशभर में खड़े होने की पहचान बन गया। उन्होंने कहा कि यह गीत लोगों को शक्ति देता रहा और उन्हें अन्याय के खिलाफ खड़े होने का साहस देता रहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भी वंदे मातरम् एक प्रेरणा का स्रोत है। यह केवल देशप्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यह गीत लोगों को यह याद दिलाता है कि देशहित हमेशा सर्वोपरि होना चाहिए।
कांग्रेस की वर्तमान नीति पर टिप्पणी
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के अंत में कहा कि कांग्रेस की नीतियां आज भी उसी दिशा में चल रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें एमएमसी शब्द का प्रयोग करना पड़ा, जिसका अर्थ उन्होंने मुस्लिम-लीगी माओवादी कांग्रेस बताया। उन्होंने कहा कि यह शब्द कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक दिशा को दर्शाता है।
संसद में वातावरण
भाषण के दौरान कई बार सदन में हलचल हुई। विपक्ष ने बीच-बीच में आपत्ति भी जताई, लेकिन प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि इतिहास को सही रूप में समझना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका उद्देश्य राजनीति नहीं, बल्कि देश की भावना को समझाना है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि वह ध्वनि है जिसने देश को कठिन परिस्थितियों में राह दिखाई।