Mahua Moitra: संसद में सवाल पूछने के बदले कथित नकदी लेनदेन से जुड़े मामले में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी कानूनी राहत मिली है। हाई कोर्ट ने भारत के लोकपाल द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने की अनुमति देने वाले आदेश को रद्द कर दिया है।
यह फैसला न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुनाया। इससे पहले अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
महुआ मोइत्रा ने दी थी चुनौती
महुआ मोइत्रा ने लोकपाल के 12 नवंबर को पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें सीबीआई को उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मंजूरी दी गई थी। उनका तर्क था कि लोकपाल ने उनके लिखित जवाबों पर समुचित विचार किए बिना ही जांच की अनुमति दे दी, जबकि उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया था और मौखिक सुनवाई भी हुई थी।
याचिका की सुनवाई के दौरान मोइत्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने अदालत से सीबीआई की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। हालांकि, उस समय अदालत ने किसी भी प्रकार की अस्थायी राहत देने से इनकार कर दिया था।
क्या है पूरा विवाद
यह मामला उस आरोप से जुड़ा है जिसमें दावा किया गया था कि महुआ मोइत्रा ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के कहने पर संसद में प्रश्न पूछे। इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने शिकायत दर्ज कराई थी।
निशिकांत दुबे का कहना था कि उन्हें यह जानकारी अधिवक्ता जयअनंत देहादराई से प्राप्त हुई है। बाद में उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि जयअनंत देहादराई, महुआ मोइत्रा के पुराने परिचित हैं और उन्होंने ही यह दावा किया कि कारोबारी से कथित रूप से लाभ लेकर संसद में प्रश्न पूछे गए।
दुबे ने यह भी आरोप लगाया था कि महुआ मोइत्रा द्वारा संसद में पूछे गए कुल 61 प्रश्नों में से 50 प्रश्न दर्शन हीरानंदानी और उनकी कंपनियों के व्यावसायिक हितों से जुड़े थे।
दिल्ली हाई कोर्ट के इस ताजा आदेश को महुआ मोइत्रा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपलब्धि माना जा रहा है, जिससे इस हाई-प्रोफाइल मामले में जांच की दिशा और आगे की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।