G Ram G Bill: कल गुरुवार की रात संसद परिसर में एक असामान्य दृश्य देखने को मिला। लोकतंत्र के मंदिर के भीतर कानून पारित हो चुका था, लेकिन उसके बाहर लोकतांत्रिक असहमति की आवाजें जमीन पर बैठकर उठ रही थीं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के स्थान पर ‘विकसित भारत– जी राम जी विधेयक, 2025’ के पारित होने के विरोध में विपक्षी सांसदों ने संसद परिसर में 12 घंटे का धरना दिया। यह धरना केवल एक कानून के खिलाफ नहीं था, बल्कि उस प्रक्रिया के खिलाफ भी था, जिसे विपक्ष ने गरीबों, ग्रामीणों और श्रमिकों के अधिकारों पर सीधा प्रहार बताया।
संसद ने गुरुवार को जिस तेजी से इस विधेयक को पारित किया, उसने विपक्ष को हतप्रभ कर दिया। दिन में लोकसभा और देर रात राज्यसभा से पारित हुए इस कानून को आधी रात के बाद उच्च सदन की मंजूरी मिली। सरकार का दावा है कि यह विधेयक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को ध्यान में रखकर लाया गया है, लेकिन विपक्ष इसे मनरेगा जैसी ऐतिहासिक योजना को समाप्त करने का प्रयास मान रहा है।
मनरेगा के स्थान पर नया कानून
मनरेगा केवल एक योजना नहीं थी, बल्कि ग्रामीण भारत के लिए रोजगार की गारंटी और सम्मानजनक जीवन का भरोसा थी। वर्षों से यह कानून गांवों में पलायन रोकने, महिलाओं को आर्थिक मजबूती देने और संकट के समय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देने का काम करता रहा। ऐसे में उसके स्थान पर नया कानून लाना अपने आप में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक फैसला है।
विपक्षी दलों का कहना है कि ‘विकसित भारत– जी राम जी विधेयक’ को जिस तरीके से लाया और पारित किया गया, वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है। उनके अनुसार, इतनी महत्वपूर्ण नीति पर न तो पर्याप्त चर्चा हुई और न ही सभी पक्षों को सुना गया।
संसद परिसर में रात भर का धरना
विधेयक पारित होने के तुरंत बाद विपक्षी सांसद संसद परिसर में धरने पर बैठ गए। यह धरना गुरुवार रात से शुक्रवार सुबह तक चला। सांसदों ने स्पष्ट किया कि संसद में विरोध के बाद अब वे जनता के बीच जाकर इस मुद्दे को उठाएंगे। यह संकेत था कि यह लड़ाई केवल सदन तक सीमित नहीं रहने वाली।
तृणमूल कांग्रेस की सांसद सागरिका घोष ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह विधेयक गरीब-विरोधी, किसान-विरोधी और ग्रामीण भारत के खिलाफ है। उनके शब्दों में यह केवल नीति परिवर्तन नहीं, बल्कि उन करोड़ों लोगों का अपमान है, जिनकी आजीविका मनरेगा से जुड़ी थी।
‘पांच घंटे का नोटिस और लोकतंत्र की हत्या’
सागरिका घोष ने आरोप लगाया कि विपक्ष को इस विधेयक पर विचार के लिए केवल पांच घंटे का नोटिस दिया गया। उन्होंने कहा कि न तो गहन चर्चा की अनुमति दी गई और न ही इसे प्रवर समिति को भेजा गया, ताकि सभी पहलुओं पर विचार हो सके। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया तानाशाही मानसिकता को दर्शाती है और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात है।
विपक्ष का मानना है कि जब मनरेगा जैसा कानून बनाया गया था, तब महीनों तक राज्यों, विशेषज्ञों और हितधारकों से परामर्श किया गया था। इसके विपरीत, नया कानून जल्दबाजी में पारित किया गया।
कांग्रेस का हमला: श्रमिकों पर सीधा प्रहार
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस दिन को देश के श्रमिक वर्ग के लिए दुखद बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि मनरेगा को समाप्त कर सरकार ने लगभग 12 करोड़ लोगों की आजीविका पर हमला किया है। उनके अनुसार, यह फैसला मोदी सरकार की किसान-विरोधी और गरीब-विरोधी सोच को उजागर करता है।
कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक ने भी इस योजना की व्यावहारिकता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालेगी, जिससे इसके विफल होने की आशंका है। उनका मानना है कि बिना पर्याप्त तैयारी के लाई गई योजना का खामियाजा अंततः गरीबों को ही भुगतना पड़ेगा।
गांधी के नाम पर सियासत और प्रतीकों की बहस
द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता तिरुचि शिवा ने इस मुद्दे को प्रतीकों से जोड़ते हुए कहा कि संसद परिसर में महात्मा गांधी और बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमाओं को पीछे की ओर स्थानांतरित कर दिया गया है। उनके अनुसार, अब रोजगार योजना से राष्ट्रपिता का नाम हटाया जाना विपक्ष और आम जनता की भावनाओं को आहत करता है।
विपक्ष ने साफ कर दिया है कि यह संघर्ष यहीं नहीं रुकेगा। संसद से सड़क तक जाने की घोषणा इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक बहस के केंद्र में रहेगा। सवाल यह नहीं है कि नया कानून आए या नहीं, सवाल यह है कि क्या विकास की परिकल्पना गरीबों की सुरक्षा के बिना पूरी हो सकती है।