महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में एक बड़े निर्माण घोटाले का खुलासा हुआ है। तीन नामी ठेकेदारों ने मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार करके बेंबला बांध परियोजना के मुख्य नहर निर्माण का ठेका हासिल किया था। यह मामला 2006 से 2014 के बीच का है, लेकिन अब जाकर इसकी गंभीरता सामने आई है। अवधुतवाडी थाने में इन तीनों ठेकेदारों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी के गंभीर आरोपों में मामला दर्ज किया गया है।
घोटाले में शामिल आरोपी ठेकेदार
इस बड़े घोटाले में तीन बड़े ठेकेदारों के नाम सामने आए हैं। पहला नाम है यवतमाल के 50 वर्षीय सुमीत बाजोरिया का, जो बाजोरिया कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाते हैं। दूसरे आरोपी हैं 65 वर्षीय सतीश भोयर, जो एस डी भोयर एंड कंपनी के मालिक हैं। तीसरे आरोपी नागपुर के 71 वर्षीय अभयकुमार पनवेलकर हैं, जो पी के कंस्ट्रक्शन कंपनी नागपुर से जुड़े हैं। ये तीनों अनुभवी ठेकेदार माने जाते हैं और इनकी कंपनियां कई सालों से निर्माण कार्य करती आ रही हैं।
कैसे हुआ घोटाला
बेंबला बांध परियोजना की मुख्य नहर का मिट्टी और निर्माण कार्य एक महत्वपूर्ण ठेका था। इस ठेके को पाने के लिए तीनों ठेकेदारों ने एक योजना बनाई। इन्होंने अन्य कंपनियों के नाम से फर्जी कागजात तैयार करवाए। ये दस्तावेज इतने असली लग रहे थे कि शुरुआत में किसी को संदेह नहीं हुआ। इन जाली कागजातों के आधार पर इन्होंने ठेका हासिल कर लिया और सिंचाई विभाग को अपने जाल में फंसा लिया।
इन ठेकेदारों ने दूसरी कंपनियों के नाम का गलत इस्तेमाल किया। उन्होंने ऐसे दस्तावेज बनवाए जिनमें वे कंपनियां दिखाई गईं जो असल में या तो मौजूद नहीं थीं या फिर उनकी जानकारी के बिना उनके नाम का इस्तेमाल किया गया। इस तरह की धोखाधड़ी से न केवल सरकारी विभाग को नुकसान हुआ बल्कि ईमानदार ठेकेदारों को भी नुकसान पहुंचा।
सिंचाई विभाग को कैसे लगा चूना
सिंचाई विभाग को इस मामले में पूरी तरह से ठगा गया। विभाग के अधिकारियों ने सामान्य प्रक्रिया का पालन करते हुए दस्तावेजों की जांच की, लेकिन फर्जी कागजात इतने अच्छे से तैयार किए गए थे कि वे असली लगे। इस वजह से ठेका इन ठेकेदारों को दे दिया गया। बाद में जब गहराई से जांच हुई तो पता चला कि पूरा मामला फर्जीवाड़े का है।
बेंबला परियोजना महाराष्ट्र की एक महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है। इसके तहत हजारों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होनी थी। ऐसी बड़ी परियोजना में धोखाधड़ी होना न केवल सरकारी खजाने का नुकसान है बल्कि किसानों और आम जनता के विकास में भी बाधा है।
कानूनी कार्रवाई
बेंबला परियोजना के कार्यकारी इंजीनियर कार्यालय की ओर से अवधुतवाडी थाने में शिकायत दर्ज कराई गई। पुलिस ने तीनों ठेकेदारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465, 466 और 471 के तहत मामला दर्ज किया है। ये सभी धाराएं जालसाजी और फर्जीवाड़े से संबंधित हैं।
धारा 465 के तहत जालसाजी करना, धारा 466 के तहत धोखाधड़ी के इरादे से नकली दस्तावेज बनाना और धारा 471 के तहत जाली दस्तावेज को असली के रूप में इस्तेमाल करना अपराध माना जाता है। इन धाराओं के तहत सजा का प्रावधान है।
लंबे समय तक क्यों रहा छिपा
यह घोटाला 2006 से 2014 के बीच का है, लेकिन अब सामने आया है। सवाल उठता है कि इतने सालों तक यह मामला क्यों छिपा रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि अक्सर बड़ी परियोजनाओं में कागजी कार्रवाई इतनी ज्यादा होती है कि फर्जीवाड़े का पता लगने में समय लग जाता है। इसके अलावा जब तक कोई शिकायत न हो या गहन जांच न हो, ऐसे मामले सामने नहीं आते।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि विभागीय लापरवाही भी इसकी एक वजह हो सकती है। अगर शुरुआत में ही सख्त जांच होती तो शायद यह घोटाला उसी समय पकड़ में आ जाता।
इस मामले का असर
यह घोटाला सिर्फ तीन ठेकेदारों तक सीमित नहीं है। इससे पूरी निर्माण व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। ईमानदार ठेकेदारों का विश्वास टूटता है जब वे देखते हैं कि फर्जीवाड़ा करने वाले आसानी से ठेके हासिल कर लेते हैं।
किसानों और स्थानीय लोगों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ता है। बेंबला बांध की परियोजना से हजारों किसानों को लाभ मिलना था। अगर निर्माण कार्य में गड़बड़ी हुई होगी तो उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठेंगे। इससे परियोजना की मजबूती और लंबी उम्र पर असर पड़ता है।
आगे की जांच
अभी यह मामला शुरुआती चरण में है। पुलिस सभी दस्तावेजों की गहन जांच कर रही है। आरोपी ठेकेदारों से पूछताछ की जाएगी। यह भी पता लगाया जाएगा कि क्या इस घोटाले में कोई और लोग भी शामिल थे। अगर किसी सरकारी अधिकारी की मिलीभगत पाई गई तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी।
सिंचाई विभाग भी अपनी आंतरिक जांच कर रहा है। विभाग यह देखेगा कि कैसे फर्जी दस्तावेजों को मंजूरी मिल गई और भविष्य में ऐसे मामलों को कैसे रोका जा सकता है।
सबक और सुधार की जरूरत
इस घोटाले से यह सबक मिलता है कि सरकारी विभागों को ठेके देते समय बेहद सावधानी बरतनी चाहिए। दस्तावेजों की सिर्फ सतही जांच नहीं बल्कि गहन पड़ताल जरूरी है। डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करके दस्तावेजों की असलियत जांची जा सकती है।
इसके अलावा पारदर्शिता जरूरी है। ठेके देने की पूरी प्रक्रिया सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे। समय-समय पर ऑडिट भी होना चाहिए।
यह मामला महाराष्ट्र में निर्माण क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की एक बानगी है। जरूरत है सख्त कानून और उनके सही क्रियान्वयन की, ताकि ऐसे मामले दोबारा न हों और जनता का पैसा सही जगह खर्च हो।