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Thane Municipal Election: चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने , गठबंधन पर संकट के बादल

चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने
चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने (File Photo)
ठाणे नगर निगम चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना के बीच सियासी टकराव खुलकर सामने आ गया है। दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। इस संघर्ष का असर न केवल ठाणे बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति पर भी पड़ सकता है।
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Thane Municipal Election: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। ठाणे नगर निगम चुनाव से पहले जिस तरह से सियासी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं, उसने न केवल स्थानीय राजनीति बल्कि राज्य की सत्ता में शामिल दलों के रिश्तों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। आमतौर पर विपक्ष बनाम सत्ता की लड़ाई देखने वाले चुनावी मैदान में इस बार तस्वीर कुछ अलग है। यहां मुकाबला सहयोगी दलों के बीच दिखाई दे रहा है, जहां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना आमने-सामने खड़ी हैं।

चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे दोनों दलों की रणनीति और तेवर भी खुलकर सामने आने लगे हैं। गठबंधन की राजनीति में लंबे समय तक तालमेल की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनावी अभियान चला रही हैं। यह स्थिति न केवल ठाणे की राजनीति को दिलचस्प बना रही है, बल्कि आने वाले समय में महाराष्ट्र की सत्ता की दिशा को भी प्रभावित कर सकती है।

ठाणे की राजनीति में दरार की शुरुआत

ठाणे को लंबे समय से एकनाथ शिंदे का मजबूत राजनीतिक गढ़ माना जाता रहा है। स्थानीय स्तर पर शिवसेना की पकड़ और शिंदे की व्यक्तिगत लोकप्रियता ने इस सीट को खास बना दिया है। लेकिन हालिया घटनाक्रम ने यह संकेत दे दिया है कि इस बार चुनावी लड़ाई आसान नहीं होने वाली। बीजेपी द्वारा पूरे शहर में ‘नमो भारत, नमो ठाणे’ जैसे नारों के साथ बैनर और होर्डिंग लगाए जाने को शिवसेना ने सीधी चुनौती के रूप में लिया है।

बीजेपी का अलग चुनावी अभियान

बीजेपी ने ठाणे में जिस तरह से अलग पहचान के साथ चुनाव प्रचार शुरू किया है, वह साफ इशारा करता है कि पार्टी अब किसी समझौते के मूड में नहीं दिख रही। पार्टी के स्थानीय नेताओं का मानना है कि संगठनात्मक ताकत और केंद्र व राज्य की सरकारों की उपलब्धियों के सहारे वे जनता के बीच मजबूत संदेश देने में सफल होंगे। हालांकि, इस कदम ने सहयोगी दल शिवसेना को असहज कर दिया है।

शिवसेना की नाराजगी और प्रतिक्रिया

बीजेपी के प्रचार अभियान के जवाब में शिवसेना ने भी अपने स्तर पर अलग से चुनावी गतिविधियां तेज कर दी हैं। पार्टी के नेताओं का कहना है कि ठाणे शिवसेना की पहचान रहा है और यहां किसी भी तरह की राजनीतिक अनदेखी स्वीकार नहीं की जाएगी। शिवसेना के लिए यह चुनाव केवल नगर निगम की सत्ता का सवाल नहीं है, बल्कि पार्टी की साख और नेतृत्व की मजबूती से भी जुड़ा हुआ है।

गठबंधन की खामोशी और बढ़ती आशंकाएं

अब तक बीजेपी और शिवसेना के बीच चुनाव को लेकर किसी औपचारिक गठबंधन या सीट बंटवारे का ऐलान नहीं हुआ है। चुनाव में समय कम बचा है और इसी वजह से दोनों दलों की अलग-अलग तैयारियां कई सवाल खड़े कर रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो इसका सीधा नुकसान शिवसेना को हो सकता है, क्योंकि बीजेपी की मजबूत सांगठनिक क्षमता चुनावी गणित को बदल सकती है।

राज्य की राजनीति पर असर

ठाणे का यह सियासी टकराव केवल एक नगर निगम चुनाव तक सीमित नहीं है। इसके नतीजे आने वाले समय में राज्य सरकार के भीतर तालमेल और विश्वास पर भी असर डाल सकते हैं। यदि सहयोगी दलों के बीच यह दूरी और बढ़ती है, तो इसका असर भविष्य के बड़े चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।

बीएमसी चुनाव पर भी सबकी नजर

ठाणे के साथ-साथ सभी दलों की निगाहें मुंबई महानगरपालिका चुनाव पर भी टिकी हुई हैं। 15 जनवरी को होने वाले बीएमसी चुनाव और 16 जनवरी को आने वाले नतीजे महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं। देश की सबसे समृद्ध नगरपालिकाओं में गिनी जाने वाली बीएमसी पर कब्जा हर पार्टी का सपना है और इसी वजह से सियासी दांव-पेंच तेज हो गए हैं।

मुख्यमंत्री का संयम का संदेश

इस पूरे घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी नेताओं को संयम बरतने का संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सहयोगी दलों के खिलाफ कोई भी आपत्तिजनक बयान न दिया जाए। यह संदेश बताता है कि शीर्ष नेतृत्व फिलहाल टकराव को खुली जंग में बदलने से बचना चाहता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है।

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Dipali Kumari

दीपाली कुमारी पिछले तीन वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने रांची के गोस्सनर कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। सामाजिक सरोकारों, जन-जागरूकता और जमीनी मुद्दों पर लिखने में उनकी विशेष रुचि है। आम लोगों की आवाज़ को मुख्यधारा तक पहुँचाना और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों को धारदार लेखन के माध्यम से सामने लाना उनका प्रमुख लक्ष्य है।