देश में सकल माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी संग्रह की रफ्तार में कमी आई है। नवंबर महीने में जीएसटी संग्रह सिर्फ 0.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि के साथ 1.70 लाख करोड़ रुपये रहा है। यह आंकड़ा पिछले साल इसी महीने के मुकाबले बहुत कम है। सरकार द्वारा सोमवार को जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। घरेलू राजस्व में गिरावट इस कम वृद्धि का मुख्य कारण बताया जा रहा है।
घरेलू राजस्व में आई बड़ी गिरावट
नवंबर महीने में घरेलू राजस्व संग्रह में 2.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। यह आंकड़ा 1.24 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक रहा है। पिछले साल नवंबर में यह संग्रह इससे बेहतर था। विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट सरकार की तरफ से कुछ वस्तुओं पर जीएसटी की दरों में कमी किए जाने के बाद आई है।
सरकार ने 22 सितंबर से करीब 375 वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती लागू की थी। इन नई दरों का असर अब राजस्व संग्रह पर साफ दिखाई दे रहा है। हालांकि, यह कदम आम लोगों को राहत देने के लिए उठाया गया था, लेकिन इसका सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ा है।
आयात से राजस्व में बढ़ोतरी
घरेलू राजस्व में गिरावट के बावजूद वस्तुओं के आयात से मिलने वाले राजस्व में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। नवंबर महीने में आयात से प्राप्त राजस्व 10.2 प्रतिशत बढ़कर 45,976 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह वृद्धि दर्शाती है कि देश में आयातित वस्तुओं की मांग बढ़ी है और विदेशी व्यापार गतिशील बना हुआ है।
यह बढ़ोतरी कुल जीएसटी संग्रह में थोड़ी राहत देने वाली साबित हुई है। अगर आयात से मिलने वाला यह राजस्व नहीं बढ़ता तो समग्र जीएसटी संग्रह की स्थिति और भी कमजोर हो सकती थी।
पिछले साल के आंकड़ों से तुलना
अगर पिछले साल नवंबर 2023 के आंकड़ों से तुलना की जाए तो जीएसटी संग्रह में बहुत मामूली बढ़ोतरी हुई है। बीते साल नवंबर में कुल जीएसटी संग्रह 1.69 लाख करोड़ रुपये था, जबकि इस साल यह 1.70 लाख करोड़ रुपये रहा है। यह सिर्फ 1000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी है, जो प्रतिशत के हिसाब से बेहद कम है।
यह आंकड़े बताते हैं कि देश की आर्थिक विकास दर में भी कुछ सुस्ती आई है। जीएसटी संग्रह अर्थव्यवस्था की सेहत का एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है। जब संग्रह में तेजी आती है तो इसका मतलब होता है कि बाजार में खरीद-बिक्री बढ़ रही है और व्यापारिक गतिविधियां मजबूत हैं।
लोकसभा में पेश हुए दो महत्वपूर्ण विधेयक
जीएसटी से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सरकार ने सोमवार को लोकसभा में दो नए विधेयक पेश किए। ये विधेयक तंबाकू, पान मसाला और अन्य तंबाकू उत्पादों पर कर व्यवस्था से जुड़े हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विपक्षी सदस्यों की भारी नारेबाजी के बीच ये विधेयक सदन में पेश किए।
इन विधेयकों का उद्देश्य जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर खत्म होने के बाद भी तंबाकू उत्पादों पर कुल कर भार को समान स्तर पर बनाए रखना है। सरकार नहीं चाहती कि इन वस्तुओं पर कर कम हो, क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी जाती हैं।
विपक्ष का विरोध और सरकार का रुख
तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत रॉय और द्रमुक सांसद कथिर आनंद ने इन विधेयकों का जोरदार विरोध किया। रॉय ने आरोप लगाया कि इन विधेयकों में तंबाकू पर उत्पाद शुल्क वसूलने का प्रावधान तो है, लेकिन तंबाकू उत्पादों के सेहत पर होने वाले हानिकारक प्रभाव के पहलू की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है।
कथिर आनंद ने कहा कि सरकार इन विधेयकों के जरिए जनता पर कर का और अधिक बोझ डालने की कोशिश कर रही है। उन्होंने मांग की कि सरकार को पहले आम लोगों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए, न कि नए कर लगाने चाहिए।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक 2025
केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक 2025 के तहत सिगरेट सहित विभिन्न तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क लगाया जाएगा। यह शुल्क अभी तक लगाए जा रहे जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर की जगह लेगा। इस तरह से सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि तंबाकू उत्पादों पर कर की कुल दर पहले जैसी ही बनी रहे।
तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माने जाते हैं। इसलिए दुनियाभर की सरकारें इन पर ऊंचे कर लगाती हैं ताकि लोग इनका उपयोग कम करें। भारत सरकार भी इसी नीति का पालन कर रही है।
स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक 2025
दूसरा विधेयक यानी स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक 2025 पान मसाला पर लगाए जाने वाले क्षतिपूर्ति उपकर की जगह लेगा। इस विधेयक का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े खर्चों के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाना है।
इस विधेयक के तहत उन मशीनों या प्रक्रियाओं पर उपकर लगाया जाएगा, जिनके माध्यम से पान मसाला जैसी वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन किया जाता है। यह एक नया तरीका है जिससे सरकार राजस्व बढ़ाना चाहती है।
वर्तमान कर व्यवस्था
वर्तमान में तंबाकू और पान मसाला पर 28 प्रतिशत की दर से जीएसटी लागू है। यह जीएसटी की सबसे ऊंची दर है। इसके अलावा इन उत्पादों पर अलग-अलग दरों पर क्षतिपूर्ति उपकर भी वसूला जाता है। जब जीएसटी लागू हुआ था तब राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए यह क्षतिपूर्ति उपकर लगाया गया था।
अब जब यह क्षतिपूर्ति उपकर खत्म हो रहा है तो सरकार इसकी जगह नए उपकर लगाना चाहती है ताकि कुल कर की दर वही बनी रहे और राजस्व में कमी न आए।
आर्थिक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
जीएसटी संग्रह में मामूली वृद्धि और घरेलू राजस्व में गिरावट से सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं। सरकार को विभिन्न योजनाओं और विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धन की जरूरत होती है। अगर राजस्व संग्रह में कमी आती है तो इसका असर सरकारी खर्चों पर भी पड़ सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि त्योहारी सीजन के बाद की यह गिरावट सामान्य है। आने वाले महीनों में जैसे-जैसे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, जीएसटी संग्रह में भी सुधार की उम्मीद है। सरकार भी विभिन्न सुधारों के जरिए राजस्व बढ़ाने के प्रयास कर रही है।
इन नए विधेयकों से सरकार को अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है, जो घरेलू राजस्व में आई कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकता है। लेकिन इन विधेयकों को लेकर विपक्ष का विरोध जारी रहने की संभावना है, क्योंकि वे इसे जनता पर अतिरिक्त कर बोझ के रूप में देख रहे हैं।