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देश में चुनावी प्रक्रिया और मत गणना की व्यवस्था को लेकर एक बार फिर प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। Election Commission of India (ECI) के ऊपर आरोप लगे हैं कि मतगणना और मत सुरक्षा के मानकों का पर्याप्त ध्यान नहीं रखा गया। खासकर Kiren Rijiju के वक्तव्य ने इस विवाद को और तीव्र बना दिया है जिसमें उन्होंने Rahul Gandhi द्वारा उठाए गए “मत चोरी” के आरोपों को बिना प्रमाण वाला करार दिया। इस पूरे मामले ने निर्वाचन प्रक्रिया की विश्वसनीयता, संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता तथा विपक्ष व सरकार के बीच तनाव को एक नया रूप दे दिया है।
मतगणना व मत सुरक्षा: मुख्य मुद्दे
मतगणना और मत सुरक्षा का मामला मुख्य रूप से तीन पहलुओं में सामने आ रहा है — मतदाता सूची का अद्यतन, मत गणना के दौरान पारदर्शिता तथा सरकारी-निर्वाचन संस्थानों की निष्पक्षता। हाल ही में ECI पर यह आरोप लगे हैं कि कुछ राज्यों में पुराने मतदाता सूची का उपयोग किया गया और विशेष रूप से यह कहा गया कि यह “2002 वर्ष आधारित” सूची का उपयोग है जिसे विवादित बताया गया है। इसके अलावा, कथित मत चोरी के दावों ने इस प्रक्रिया पर संदेह बढ़ा दिया है।
सरकार व विपक्ष का रुख
सरकार पक्ष ने विपक्ष पर आरोप लगाया है कि वह संस्थानों की विश्वसनीयता को खंडित कर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करना चाहता है। इस क्रम में केंद्र सरकार ने कहा है कि आरोपों के पीछे ‘राजनीतिक उद्देश्य’ हैं। दूसरी ओर विपक्ष ने कहा है कि जब-जब चुनाव होते हैं, लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं और इस बार भी वे इसे गंभीर मानते हैं। क्षेत्रीय नेता और नागरिक-संगठन भी इस बहस में शामिल हो गए हैं कि क्या मतदाता सूची तथा मतगणना प्रक्रिया पूरी तरह साफ-सुथरी है।
राज्य-स्तरीय चुनौतियाँ
कई राज्यों में यह बताया गया है कि मतदाता सूची अद्यतन न होने के कारण पुरानी और मृत मतदाताओं के नाम अभी भी सूची में हैं। इसके परिणामस्वरूप मतदाता पहचान की समस्या सामने आ रही है। इसके अलावा, मतगणना के समय विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा देखे गए ‘पारदर्शिता’ के अभाव की शिकायतें भी दर्ज हुई हैं। इन चुनौतियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में चुनावी 분위त-परिस्थितियाँ जटिल बना दी हैं।
लोकतंत्र के लिए संभावित असर
जब मतगणना व मत सुरक्षा को लेकर भरोसा घटेगा, तब सार्वजनिक विश्वास कमजोर होगा और लोकतांत्रिक बहस प्रभावित होगी। इशारा यह है कि लोकतंत्र केवल मतदान तक सीमित नहीं है, बल्कि मतदान के बाद की प्रक्रिया और उसके परिणाम को स्वीकार्य बनाने तक का सफर है। यदि मतगणना पारदर्शी नहीं होगी, तो चुनाव परिणाम स्वीकार करना व्यापक जनता के लिए कठिन हो जाएगा। इससे राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक असमंजस तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं में अविश्वास बढ़ने का खतरा हो सकता है।
आगे की राह व सुझाव
इस स्थिति से उबरने के लिए सुझाव दिए जा रहे हैं कि प्रथम: मतदाता सूची का नियमित अद्यतन होना चाहिए और इसमें तकनीकी समाधानों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। द्वितीय: मतगणना प्रक्रिया में स्टेट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल, जैसे- ई-गणना, लाइव फीड बैकअप, तथा स्वतंत्र पर्यवेक्षण को सक्षम बनाना होगा। तृतीय: निर्वाचन आयोग को और अधिक स्वतंत्र और स्तरीय संसाधन दिए जाने चाहिए ताकि वह बाहरी दबावों से सुरक्षित रह सके। इस तरह से भरोसा फिर से स्थापित किया जा सकता है।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।