नालंदा जिले की राजनीति में चुनावी उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही है। जन सुराज पार्टी के भीतर अब सार्वजनिक बगावत ने तूल पकड़ लिया है। पार्टी नेतृत्व की टिकट वितरण नीति पर असंतोष गहराया है और अंततः करीब 200 कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ने की धमकी दी है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव से पहले संगठनात्मक असमंजस कितना घातक हो सकता है।
पूर्व सहयोगी अनदेखे: बिखरती आस्था
पार्टी के उन कार्यकर्ताओं का आरोप है जिन्होंने शुरुआत से ही जन सुराज पार्टी के लिए मैदान में मेहनत की, उन्हें अनदेखा किया गया। खासतौर पर प्रियदर्शी अशोक कुमार का नाम सामने आ रहा है, जिनका दावा है कि उन्होंने वर्ष-भर पार्टी की रीढ़ की तरह काम किया, लेकिन टिकट मिलने पर किसी और को प्राथमिकता दी गई। उन्हें यह आश्चर्य है कि “परिवारवाद मुक्त राजनीति” का नारा देने वाला नेतृत्व आखिरकार उसी दलगत समीकरणों का पालन क्यों कर रहा है, जिससे वे पहले विरोध करते आए थे।
टिकट विवाद और असंतोष की ज्वाला
पार्टी नेतृत्व ने तीन उम्मीदवारों को टिकट प्रदान किया। इस भागवंडर में उन लोगों की पीड़ा छुपी है जो लंबे समय से जमीन पर काम कर रहे थे। आर.सी.पी. सिंह ने अपनी बेटी को टिकट देने का निर्णय लिया, जिसे कार्यकर्ता अन्यायपूर्ण और पक्षपाती मानते हैं। इस कदम ने नेतृत्व की नैतिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और अनेक कार्यकर्ताओं में खीझ उत्पन्न कर दी है।

सामूहिक इस्तीफा: शक्ति प्रदर्शन या मजबूरी?
जब असंतोष का स्तर बढ़ गया, तो नालंदा विधानसभा क्षेत्र के लगभग २०० कार्यकर्ताओं ने सामूहिक रूप से इस्तीफा देने का प्रस्ताव रखा। यह न केवल एक संगठनात्मक समस्या है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि पार्टी भीतर से टूट सकती है। इस कदम में एक साथ इतने व्यापक बहिष्करण की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि यह कोई छोटी शिकायत नहीं, बल्कि गहरी नाराजगी है।
प्रियदर्शी अशोक कुमार का विद्रोही पैंतरा
प्रेस वार्ता में प्रियदर्शी अशोक कुमार ने सिंहद्वार खोलते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की। उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि नालंदा विधानसभा क्षेत्र के शिक्षा, रोजगार और विकास जैसे मूलभूत मुद्दों पर वे ही सबसे बेहतर विकल्प होंगे। वे यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि वे जनता की हित में काम करने वाले दल को समर्थन देंगे, चाहे वह कोई भी हो।
उनका कहना है कि जन सुराज पार्टी के नेतृत्व ने उनके और अन्य कार्यकर्ताओं के विश्वास को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि पार्टी की विचारधारा से दूर हो चुका नेतृत्व अब केवल वंशवाद और स्वार्थ का प्रवर्तन कर रहा है।
वेब स्टोरी:
राजनीतिक मायने और आगे की राह
यह बगावत न सिर्फ स्थानीय संगठन के लिए खतरा है, बल्कि पार्टी की दूरदर्शिता और चुनावी रणनीति पर सवाल खड़ा करती है। यदि पार्टी इस आक्रोश को शांत न कर पाए, तो आने वाले मतदाता समरूप रवैया अपना सकते हैं। कार्यकर्ता, जो जमीन पर संगठन का आधार होते हैं, यदि उनमें आस्था न बचे, तो पार्टी का जनाधार कमजोर हो जाएगा।
लेखनी कहती है कि अभी भी समय है — यदि जन सुराज पार्टी अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे, मामला सुलझाए और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करे, तो वह इस आंधी को झेल सकती है। अन्यथा, राज्य-स्तर पर उसकी छवि धूमिल हो सकती है और उसके वोट बैंक पर असर हो सकता है।