पटना: बिहार की गठबंधन राजनीति में इस बार भी बड़े पैमाने पर भाजपा और राजद अपने सहयोगी दलों के वोट शेयर में आगे नजर आ रहे हैं। जदयू को लगातार वोट शेयर की कमी से जूझना पड़ रहा है, जबकि महागठबंधन में राजद और भाकपा-माले का प्रदर्शन औसत से बेहतर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार बिहार में चुनावी गणित केवल पार्टी की ताकत नहीं बल्कि गठबंधन के भीतर वोट ट्रांसफर की क्षमता पर भी निर्भर करता है। एनडीए में भाजपा लगातार गठबंधन के औसत वोट शेयर से अधिक वोट हासिल कर रही है। जदयू की लगातार गिरती वोट हिस्सेदारी पिछले चुनावों में भी देखी गई है।
पिछले चुनावों का आंकड़ा बताते हैं कि 2020 में एनडीए को औसतन 37.6% वोट मिला, जिसमें भाजपा का वोट शेयर 43.2% रहा जबकि जदयू को केवल 33.5% वोट मिले। इसी तरह, महागठबंधन में राजद हमेशा औसत से आगे रही। 2015 में राजद को प्रति सीट औसत 45.2% वोट मिले, जबकि जदयू का 41.7% ही रहा। कांग्रेस इस गठबंधन में कमजोर साबित हुई, उसे मात्र 40% वोट शेयर मिला।
भाकपा-माले का प्रदर्शन भी उल्लेखनीय रहा। 2020 में लड़ी गई सीटों पर इसे 42.3% वोट मिले, जो गठबंधन के औसत से बेहतर था। वहीं, वीआईपी और हम को अपेक्षाकृत कम वोट शेयर मिला, क्रमशः 28.1% और 32.9%।
विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में गठबंधन की राजनीति में प्रभावी वोट ट्रांसफर ही जीत की कुंजी है। इस बार भाजपा और राजद अपने सहयोगियों के वोट पाने में सफल रहे हैं, जबकि जदयू और वीआईपी को इस मामले में पीछे रहना पड़ा है। आगामी विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा कई सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है।
मुख्य बिंदु:
- भाजपा और राजद गठबंधन में वोट शेयर के मामले में सबसे आगे।
- जदयू लगातार औसत वोट शेयर से कम हासिल कर रही है।
- महागठबंधन में भाकपा-माले का प्रदर्शन भी मजबूत।
- कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर, वीआईपी और हम भी पीछे।
- वोट ट्रांसफर क्षमता तय करेगी चुनावी नतीजे।