बिहार की राजनीति में उथल-पुथल का दौर
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम 2025 के बाद राज्य की राजनीति में जिस प्रकार की तेज हलचल देखने को मिल रही है, वह आने वाले दिनों में सत्ता संतुलन के नए संकेत दे रही है। एनडीए को मिली 202 सीटों की प्रचंड सफलता ने राज्य की सत्ता पर उसकी पकड़ को मजबूत किया है, जबकि महागठबंधन महज 35 सीटों पर सिमट गया है। वहीं एआईएमआईएम को 5 सीटों की प्राप्ति ने क्षेत्रीय राजनीति को नई दिशा दी है। कुल 243 सदस्यीय विधानसभा में 122 सीटों का बहुमत हासिल करने के बाद एनडीए सरकार गठन के लिए पूर्णतः तैयार दिखाई दे रहा है।
मुख्यमंत्री पद पर जारी असमंजस
हालाँकि बहुमत साफ होने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री पद को लेकर संशय कम नहीं हुआ है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि क्या नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री पद संभालेंगे या भाजपा अपनी ओर से किसी नए चेहरे को आगे करेगी। यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चुनाव परिणामों के बाद भाजपा नेताओं के बयानों और एनडीए सहयोगियों की गतिविधियों ने कई तरह के राजनीतिक संकेत उत्पन्न किए हैं।
#WATCH | पटना: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा, “नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, इसलिए LJP(रामविलास) का यह प्रतिनिधिमंडल उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देने के लिए उनसे मिलने आया था… जो लोग LJP(रामविलास) और JDU के बीच भ्रम फैला रहे थे, सिर्फ झूठी अफवाह… pic.twitter.com/26lZMEf1Q1
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 15, 2025
नीतीश–चिराग की मुलाकात ने बढ़ाई राजनीतिक गर्माहट
इसी बीच सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली घटना रही लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हुई मुलाकात। दोनों नेताओं की भेंट की तस्वीरें सामने आते ही राजनीतिक कयासों का दौर और भी तेज हो गया। यह मुलाकात न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गई है, क्योंकि चिराग पासवान चुनाव अभियान के दौरान लगातार नीतीश कुमार पर तीखे हमले करते रहे थे। ऐसे में दोनों नेताओं का मिलना कई अर्थों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सहयोगियों के बीच समीकरण नए सिरे से तय होंगे
एनडीए के भीतर सीटों के वितरण और सत्ता-साझेदारी को लेकर भी अंदरखाने बातचीत शुरू हो चुकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इतनी बड़ी जीत के बाद भाजपा सरकार गठन में निर्णायक भूमिका में होगी, लेकिन जेडीयू की भूमिका भी उतनी ही अहम रहेगी। चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाली सरकार में उन्हें महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है।
विपक्ष के पास चुनौतीपूर्ण भविष्य
महागठबंधन की कठिन हार ने विपक्ष की साख को गंभीर रूप से चोट पहुँचाई है। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने स्तर पर हार के कारणों की समीक्षा में जुट गए हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार जनता के बीच नेतृत्व की कमी, गठबंधन की कमजोर रणनीति और आंतरिक असहमति महागठबंधन की हार के प्रमुख कारण रहे। अब अगले कुछ वर्षों में विपक्ष को अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित करना होगा।
जनादेश क्या संकेत देता है
बिहार के मतदाताओं ने इस बार परिवर्तन और स्थिरता—दोनों की इच्छा को साफ संकेतों के साथ व्यक्त किया है। एनडीए को मिला यह जनसमर्थन उसके प्रति जनता के भरोसे को दर्शाता है, लेकिन इसके साथ ही विकास, रोजगार और कानून-व्यवस्था को लेकर जनता की अपेक्षाएँ भी उतनी ही बढ़ी हैं। आने वाली सरकार को इन विषयों पर ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे, तभी यह जनादेश सार्थक सिद्ध हो सकेगा।