Pride of Jharkhand: झारखंड की उपलब्धियों की सूची में नया अध्याय जुड़ गया है। पहली बार यहां के आदिवासी समुदाय के दो लोगों को यूनेस्को में अलग-अलग विषयों के लिए को-चेयर (सह अध्यक्ष) चुना गया है। इनमें पहली डॉ सोना झरिया मिंज हैं. उन्हें यूनेस्को के आदिवासी संबंधी शोध के लिए को-चेयर नियुक्त किया गया है। वहीं दूसरे व्यक्ति डॉ एनाबेल बेंजामिन बारा हैं।
आदिवासी संबंधी शोध करेंगी डॉ मिंज
डॉ सोना झरिया मिंज को जून में आदिवासी संबंधी शोध के लिए सह अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी। वह साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय कनाडा की डॉ एमी पैरेंट के साथ आदिवासी संबंधी शोध के लिए यूनेस्को की को-चेयर चुनी गयी हैं। डॉ सोना झरिया मिंज फिलहाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर हैं।
- डॉ सोना झरिया मिंज आदिवासी ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और भाषा पर शोध करेंगी
- डॉ एनाबेल बेंजामिन आदिवासी भाषाओं के डिजिटलीकरण पर काम करेंगे
सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की पूर्व कुलपति हैं सोना झरिया मिंज
सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की पूर्व कुलपति रह चुकी हैं। उनकी विशेषज्ञता गणित और कंप्यूटर साइंस में हैं। डॉ सोना झरिया मिंज आदिवासी ज्ञान, परंपरा, देशज अधिकार, संस्कृति, विरासत और भाषा पर शोध करेंगी। उन्होंने कहा कि चूंकि वह कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर हैं, तो वे शोध में आधुनिक तकनीक और एआइ को भी शामिल करेंगी। इस शोध से आदिवासी समुदाय के मुद्दों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकारों को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
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Pride of Jharkhand: 2027 तक होगा एनाबेल बेंजामिन बारा का कार्यकाल
झारखंड के दूसरे गौरव (Pride of Jharkhand) हैं गुमला के डॉ एनाबेल बेंजामिन बारा हैं। उन्हें यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय भाषा दशक (2022-2032) के लिए गठित आदिवासी भाषाओं के ग्लोबल टास्क फोर्स का सह अध्यक्ष बनाया गया है। उनका कार्यकाल वर्ष 2027 तक होगा।
लगातार दूसरी बार यूनेस्को में सह अध्यक्ष चुने गये हैं डॉ बारा
खास बात यह है कि डॉ बारा लगातार दूसरी बार यूनेस्को में सह अध्यक्ष चुने गये हैं। उनका पहला कार्यकाल 2022 से 2024 तक था। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने विभिन्न देशों में आदिवासी भाषा को लेकर बनने वाले टास्क फोर्स के गठन में मदद की थी। यह झारखंड के लिए गौरव (Pride of Jharkhand) की बात है.
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भाषाओं के डिजिटलीकरण पर भी करेंगे काम
इस बार वे भाषाओं के डिजिटलीकरण को लेकर भी काम करेंगे। इससे पहले डॉ बारा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र आदिवासी मुद्दों पर स्थायी मंच, आदिवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ तंत्र और आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्व किया है।
विशेष प्रतिवेदक के साथ बैठकें भी की हैं
साथ ही आदिवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक के साथ बैठकें भी की हैं। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने आदिवासी भाषाओं को पुनर्जीवित करने के उदेश्य से पहल की।
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं डॉ बारा
डॉ बारा ने भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में अतिरिक्त निजी सचिव और नयी दिल्ली में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में सामाजिक वैज्ञानिक के रूप में काम किया है। वे शिक्षक भी हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में बिजनेस एथिक्स, बिजनेस सस्टेनेबिलिटी, बिजनेस लॉ और उद्यमिता जैसे विषय पढ़ाते हैं।
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