भविष्य की भाषा नीति के लिए व्यापक जनसहभागिता की आवश्यकता
महाराष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत त्रिभाषा नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति त्रिभाषा नीति की रिपोर्ट तैयार कर रही है, जो आगामी 20 वर्षों तक देश के शिक्षा ढांचे पर गहरा प्रभाव डालेगी।
डॉ. जाधव ने कहा कि यह रिपोर्ट केवल आज के लिए नहीं, बल्कि 42 से 44 करोड़ विद्यार्थियों के भविष्य को आकार देने वाली होगी। इसलिए इसमें विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और समाज के सभी वर्गों की राय को शामिल करना आवश्यक है, ताकि यह नीति वास्तव में व्यवहारिक और सर्वसमावेशी बन सके।
राज्यभर में संवाद और सुझावों का अभियान
जिला नियोजन भवन, नागपुर में आयोजित संवाद कार्यक्रम में डॉ. नरेंद्र जाधव और उनकी समिति ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, शिक्षकों और सामाजिक प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श किया। इस बैठक में त्रिभाषा नीति की संरचना, उसकी व्यवहार्यता और क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व पर गहन चर्चा हुई।
समिति इस समय राज्यभर में दौरा कर रही है, और विद्यालयों, शिक्षण संस्थानों, शिक्षक संघों तथा आम नागरिकों से सुझाव प्राप्त कर रही है। समिति ने जनता की राय लेने के लिए एक आधिकारिक वेबसाइट – tribhashasamiti.mahait.org भी शुरू की है, जहां लोग ऑनलाइन प्रश्नावली भरकर अपने विचार साझा कर सकते हैं।
भाषाई विविधता ही भारत की ताकत
डॉ. जाधव ने संवाद के दौरान कहा कि भारत की वास्तविक ताकत उसकी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता में निहित है। उन्होंने कहा,
“हमारी त्रिभाषा नीति केवल शिक्षा का हिस्सा नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा का प्रतिबिंब है। हमें ऐसी नीति तैयार करनी है जो बच्चों को न केवल भाषा सिखाए, बल्कि उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम भी बने।”
उन्होंने यह भी बताया कि नीति का उद्देश्य किसी भाषा को प्राथमिक या गौण बनाना नहीं है, बल्कि सभी भाषाओं के बीच संतुलन बनाना है, ताकि बच्चे राष्ट्रीय एकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा दोनों के लिए सक्षम बन सकें।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत त्रिभाषा नीति की भूमिका
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में त्रिभाषा नीति को विशेष स्थान दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को तीन भाषाओं – मातृभाषा/क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेज़ी में दक्ष बनाना है। यह नीति न केवल भाषाई क्षमता बढ़ाएगी बल्कि विद्यार्थियों में संवेदनशीलता, सांस्कृतिक समझ और संवाद कौशल भी विकसित करेगी।
डॉ. जाधव की समिति इस नीति को स्थानीय जरूरतों और विविध भाषाई पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए पुनर्गठित करने की दिशा में कार्य कर रही है, ताकि यह महाराष्ट्र सहित पूरे देश में लागू करने योग्य मॉडल बन सके।
तकनीकी और जनसंपर्क आधारित नीति निर्माण
समिति के अनुसार, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से आम जनता की भागीदारी बढ़ाई जा रही है। वेबसाइट के अलावा, सोशल मीडिया, जिला शिक्षा कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों के माध्यम से भी सुझाव मांगे जा रहे हैं।
इस पहल से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नीति केवल विशेषज्ञों की नहीं, बल्कि जनता की साझी सोच पर आधारित हो। समिति ने नागरिकों से अपील की है कि वे अधिक से अधिक संख्या में अपने सुझाव साझा करें, ताकि त्रिभाषा नीति वास्तव में भविष्यदर्शी और समावेशी बन सके।
अगले दो दशकों के लिए नीति निर्माण का लक्ष्य
डॉ. जाधव ने स्पष्ट किया कि समिति ऐसी रिपोर्ट तैयार कर रही है जो अगले 20 वर्षों तक प्रासंगिक और कारगर बनी रहे। शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट में लचीलापन और नवाचार के सिद्धांत भी शामिल किए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की आधारशिला है। इसलिए नीति का निर्माण करते समय भावनात्मक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक सभी पहलुओं का समावेश आवश्यक है।
नागरिक सहभागिता ही सफलता की कुंजी
कार्यक्रम के अंत में डॉ. जाधव ने कहा,
“यह नीति यदि जनता की आकांक्षाओं पर खरी उतरेगी तो ही सफल होगी। इसलिए हम सबका सहयोग और सुझाव इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।”