नई दिल्ली। देश के करोड़ों होम लोन धारकों के लिए एक अहम खबर सामने आ रही है। अगले महीने यानी दिसंबर 2025 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति की बैठक होने वाली है, जिसमें रेपो रेट को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है, जिससे होम लोन, कार लोन और अन्य उधारों की ईएमआई सस्ती हो सकती है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हर दो महीने में अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक आयोजित करता है। इस बैठक में रेपो रेट की समीक्षा की जाती है और अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इसमें बदलाव या स्थिरता का निर्णय लिया जाता है। रेपो रेट में होने वाला कोई भी बदलाव सीधे तौर पर आम लोगों की जेब को प्रभावित करता है क्योंकि यह बैंकों की उधार लागत और ग्राहकों के लिए लोन की ब्याज दरों को तय करता है।
रेपो रेट क्या है और कैसे काम करता है
रेपो रेट वह दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से अल्पकालिक ऋण लेते हैं। जब किसी बैंक को तत्काल धन की आवश्यकता होती है तो वह अपनी सिक्योरिटीज को गिरवी रखकर आरबीआई से कर्ज लेता है। इस कर्ज पर जो ब्याज दर लगती है वही रेपो रेट कहलाती है। यह दर पूरी बैंकिंग प्रणाली और अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक का काम करती है।
आरबीआई रेपो रेट के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तरलता और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करता है। जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर उधार को महंगा बना देता है, जिससे बाजार में पैसे की आपूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत, जब अर्थव्यवस्था में मंदी होती है या विकास धीमा पड़ता है तो आरबीआई रेपो रेट घटाकर उधार को सस्ता बना देता है, जिससे बाजार में अधिक पैसा आता है और आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं।
अक्टूबर बैठक में कोई बदलाव नहीं
आरबीआई ने अक्टूबर 2025 में हुई अपनी पिछली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर यथावत रखा था। यह निर्णय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और मुद्रास्फीति के स्तर को ध्यान में रखते हुए लिया गया था। आरबीआई ने जून 2025 से लेकर अब तक किसी भी बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है।
हालांकि, अर्थशास्त्रियों और बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि दिसंबर की बैठक में स्थिति बदल सकती है। देश में मुद्रास्फीति अपेक्षाकृत नियंत्रण में है और आर्थिक विकास को गति देने की जरूरत है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट में कटौती का निर्णय ले सकता है। हालांकि, यह कटौती कितनी होगी, इसको लेकर अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं।
साल भर में रेपो रेट का सफर
फरवरी 2025 से लेकर अब तक रेपो रेट में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिले हैं। फरवरी 2025 में आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी और इसे 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया था। इसके बाद अप्रैल में फिर से 0.25 प्रतिशत की कटौती हुई और रेपो रेट 6 प्रतिशत से घटकर 5.75 प्रतिशत हो गया।
जून 2025 में सबसे बड़ी कटौती देखने को मिली जब आरबीआई ने एक साथ 0.50 प्रतिशत की कमी करके रेपो रेट को 5.50 प्रतिशत पर ला दिया। यह कटौती अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने और उधार को सस्ता बनाने के उद्देश्य से की गई थी। हालांकि, इसके बाद अगस्त और अक्टूबर की बैठकों में रेपो रेट को 5.50 प्रतिशत पर ही स्थिर रखा गया।
यहां फरवरी से अब तक रेपो रेट में बदलाव की पूरी तस्वीर है:
| तारीख | रेपो रेट | बदलाव |
|---|---|---|
| 7 फरवरी | 6.00% | -0.25% |
| 9 अप्रैल | 5.75% | -0.25% |
| 6 जून | 5.50% | -0.50% |
| अगस्त | 5.50% | कोई बदलाव नहीं |
| 1 अक्टूबर | 5.50% | कोई बदलाव नहीं |
Source: बैंक बाजार
दिसंबर में कटौती की संभावना
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और आर्थिक विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार, आरबीआई दिसंबर 2025 की बैठक में रेपो रेट में कटौती कर सकता है। हालांकि, इस कटौती की सटीक मात्रा को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं आई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई 0.25 प्रतिशत की सावधानीपूर्वक कटौती कर सकता है, जबकि अन्य का कहना है कि यदि आर्थिक स्थिति अनुकूल रही तो 0.50 प्रतिशत तक की कटौती हो सकती है।
यह निर्णय कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिनमें मुद्रास्फीति की दर, आर्थिक विकास की गति, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां और विदेशी मुद्रा बाजार की स्थिति शामिल हैं। आरबीआई को इन सभी पहलुओं पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा। यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहती है और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन की जरूरत है तो रेपो रेट में कटौती एक तार्किक कदम होगा।
होम लोन और ईएमआई पर प्रभाव
रेपो रेट में कटौती का सबसे सीधा प्रभाव होम लोन और अन्य उधारों की ईएमआई पर पड़ेगा। जब आरबीआई रेपो रेट घटाता है तो बैंकों को आरबीआई से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है। इसका फायदा बैंक अपने ग्राहकों तक पहुंचाते हैं और लोन की ब्याज दरें कम कर देते हैं। इससे मासिक ईएमआई का बोझ घटता है और उधारकर्ताओं को राहत मिलती है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने 50 लाख रुपये का होम लोन 20 वर्ष की अवधि के लिए 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर पर लिया है और रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती होती है तो ब्याज दर घटकर 8.25 प्रतिशत हो सकती है। इससे मासिक ईएमआई में लगभग 700 से 800 रुपये की बचत हो सकती है। पूरे लोन की अवधि में यह बचत लाखों रुपये तक पहुंच सकती है।
हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि सभी बैंक रेपो रेट में कटौती का लाभ तुरंत ग्राहकों तक नहीं पहुंचाते। कुछ बैंक अपनी व्यावसायिक रणनीति और लाभप्रदता को देखते हुए ब्याज दरों में बदलाव करने में समय लेते हैं। इसके अलावा, फिक्स्ड रेट लोन वाले ग्राहकों को इस कटौती का सीधा लाभ नहीं मिलता क्योंकि उनकी ब्याज दर पूरी लोन अवधि के लिए तय रहती है।
अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव
रेपो रेट में कटौती का प्रभाव केवल होम लोन तक सीमित नहीं रहता बल्कि यह पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। जब उधार सस्ता होता है तो व्यवसाय विस्तार के लिए अधिक कर्ज लेते हैं, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। उपभोक्ता भी अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं क्योंकि लोन की ईएमआई कम हो जाती है।
रियल एस्टेट सेक्टर रेपो रेट में कटौती से सबसे अधिक लाभान्वित होने वाले क्षेत्रों में से एक है। सस्ते होम लोन के कारण अधिक लोग घर खरीदने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे रियल एस्टेट की मांग बढ़ती है। यह न केवल निर्माण उद्योग को बल्कि इससे जुड़े सभी सहायक उद्योगों को भी लाभ पहुंचाता है।
ऑटोमोबाइल सेक्टर भी रेपो रेट में कटौती से लाभान्वित होता है क्योंकि कार लोन सस्ते हो जाते हैं। उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद में भी वृद्धि होती है क्योंकि लोगों के हाथ में अधिक खर्च करने योग्य आय आ जाती है। हालांकि, बचतकर्ताओं के लिए यह नकारात्मक हो सकता है क्योंकि बैंक जमा पर ब्याज दरें भी कम हो सकती हैं।
बैंकों की भूमिका और निर्णय
रेपो रेट में कटौती के बाद यह पूरी तरह से बैंकों के विवेक पर निर्भर करता है कि वे अपनी ब्याज दरों में कितनी कटौती करते हैं। कुछ बैंक तुरंत अपनी ब्याज दरें कम कर देते हैं जबकि अन्य सावधानीपूर्वक इंतजार करते हैं। यह निर्णय बैंक की वित्तीय स्थिति, जमा आधार, प्रतिस्पर्धा और लाभप्रदता लक्ष्यों पर निर्भर करता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आमतौर पर रेपो रेट में बदलाव को जल्दी लागू करते हैं क्योंकि उन पर सरकार का दबाव रहता है। निजी क्षेत्र के बैंक अधिक सावधानी से निर्णय लेते हैं और अपनी व्यावसायिक रणनीति के अनुसार ब्याज दरों में बदलाव करते हैं। ग्राहकों को सलाह दी जाती है कि वे रेपो रेट में कटौती के बाद विभिन्न बैंकों की ब्याज दरों की तुलना करें और यदि संभव हो तो बेहतर दरों के लिए अपने बैंक से बातचीत करें।
दिसंबर की मौद्रिक नीति समिति की बैठक का परिणाम न केवल उधारकर्ताओं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होगा। होम लोन धारक उम्मीद कर रहे हैं कि रेपो रेट में कटौती से उन्हें अपनी ईएमआई के बोझ में कुछ राहत मिलेगी।