रोहिणी आचार्य का नया प्रहार और आरजेडी राजनीति में उभरता खलबलीभरा दौर
राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव की पुत्री रोहिणी आचार्य ने एक बार फिर पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय यादव पर गंभीर और तीखे आरोप लगाए हैं। हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद आरजेडी के भीतर से उठती आवाजों और उभरते असंतोष के बीच रोहिणी के बयान अब राजनीतिक हलकों में नई दिशा तय कर रहे हैं। उनका यह प्रहार केवल एक व्यक्तिगत असहमति नहीं, बल्कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और उसके आसपास छाए प्रभावशाली चेहरों की कार्यप्रणाली पर सीधा सवाल है।
अपने आधिकारिक एक्स खाते पर जारी किए एक पोस्ट में और एक ऑडियो संदेश के माध्यम से रोहिणी आचार्य ने संजय यादव पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया। वही संजय यादव, जिन पर पहले भी चुनावी रणनीति और नेतृत्व के समीकरणों में दखलंदाजी के आरोप लगते रहे हैं, अब रोहिणी के निशाने पर खुलकर आ गए हैं।
किडनी दान की चुनौती और भावनात्मक तंज
रोहिणी आचार्य, जिन्होंने वर्ष 2022 में अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी दान कर जनसमर्थन और परिवारिक त्याग का दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत किया था, ने संजय यादव को सीधे-सीधे चुनौती दी कि यदि उनमें वाकई दया और सेवा की भावना है, तो वे किसी जरूरतमंद को अपनी किडनी दान कर दिखाएँ।
उनका कहना था कि जो लोग लालू प्रसाद यादव के नाम पर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करते हैं, वे पहले ज़रूरतमंद गरीब मरीजों के लिए आगे आएँ, जो जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। रोहिणी ने कहा कि जो लोग उन्हें—एक विवाहित बेटी को—पिता को किडनी दान करने को लेकर कटाक्ष करते हैं, उन्हें पहले इस महान कार्य के बारे में अपनी समझ विकसित करनी चाहिए।
आरजेडी की आंतरिक लड़ाई: आरोपों और नाराज़गी का सिलसिला
यह विवाद अचानक उत्पन्न नहीं हुआ। पिछले कुछ हफ्तों से आरजेडी में चुनावी हार के बाद गंभीर आत्ममंथन और आरोपों का दौर लगातार जारी है। रोहिणी आचार्य की नाराज़गी चुनाव परिणाम आने के बाद हवा में तैरने लगी थी। 15 नवंबर को वे पारिवारिक आवास से निकल गईं और दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले मीडिया के सामने गंभीर आरोप लगाए।
उन्होंने कहा कि उन्हें लालू–राबड़ी आवास पर चप्पलों से पीटने की धमकी दी गई। उनका आरोप था कि तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव और रमीज़ नेमत खान इसके पीछे थे। उन्होंने यहाँ तक कहा कि वे अब इस परिवार का हिस्सा नहीं रहीं और उन्हें जबरन घर से निकाल दिया गया।
चुनावी हार और सवालों के घेरे में नेता
बिहार विधानसभा चुनावों में आरजेडी को मिली करारी हार ने पार्टी की कार्यप्रणाली, नेतृत्व के फैसलों और रणनीति को प्रश्नों के कठघरे में खड़ा कर दिया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच संजय यादव की भूमिका को लेकर असंतोष पहले से था, और रोहिणी की नाराज़गी ने इस असंतोष को सार्वजनिक कर दिया है।
उन्होंने साफ कहा कि तेजस्वी यादव के सलाहकार खुद को चाणक्य समझते हैं, लेकिन चुनावी विफलता की जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं। पार्टी कार्यकर्ता भी यही जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसी कौन-सी रणनीतिक चूकें हुईं, जिससे आरजेडी की स्थिति इतनी खराब हुई।
संजय यादव और रमीज़ खान: तेजस्वी के करीबी और विवादों का केंद्र
संजय यादव हरियाणा के मूल निवासी हैं और लंबे समय से तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार और रणनीतिक सहयोगी माने जाते रहे हैं। उनके साथ रमीज़ नेमत खान भी पिछले एक दशक से तेजस्वी के इर्द-गिर्द रहे हैं। रमीज़ मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के रहने वाले हैं और वर्ष 2016 में आरजेडी से जुड़े।
चुनावी रणनीति, टिकट वितरण, और अंदरूनी फैसलों में इन दोनों की भूमिका को लेकर पार्टी के भीतर सवाल लगातार उठते रहे हैं। रोहिणी के बयानों ने इन आरोपों को अब खुली चुनौती का स्वरूप दे दिया है।
राजनीति में त्याग की चर्चा और नए विमर्श का उदय
रोहिणी आचार्य की चुनौती सिर्फ संजय यादव को नहीं, बल्कि उन सभी लोगों को है जो निजी हित और राजनीतिक प्रभाव को सामाजिक संवेदना से ऊपर रखते हैं। किडनी दान जैसा व्यक्तिगत बलिदान किसी भी राजनीतिक बहस से परे होता है। रोहिणी ने इसी त्याग को आधार बनाकर अपने विरोधियों से सवाल पूछा है कि क्या वे सेवा और समर्पण की उसी कसौटी पर खरे उतर सकते हैं।
उनका यह सवाल केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर नेतृत्व के नैतिक स्तर पर विचार करने के लिए एक गंभीर संकेत भी है।
सोशल मीडिया पर बढ़ती प्रतिक्रियाएँ और जनता की राय
रोहिणी की टिप्पणी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। समर्थक और आलोचक दोनों ही इस विवाद पर अपने विचार रख रहे हैं। कई लोग इसे लोकतांत्रिक पार्टी संरचना में जवाबदेही की मांग के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे पारिवारिक विवाद का राजनीतिक रूप में प्रकट होना मान रहे हैं।
आरजेडी के भविष्य पर इसका प्रभाव
बिहार की राजनीति में आरजेडी की भूमिका केंद्रीय रही है, लेकिन हालिया घटनाओं ने पार्टी की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लालू परिवार के भीतर असहमति पार्टी की रणनीति, नेतृत्व और भविष्य को प्रभावित करने की स्थिति में पहुँच चुकी है।
रोहिणी की यह चुनौती आने वाले महीनों में आरजेडी की राजनीति को कई स्तरों पर प्रभावित कर सकती है — चाहे वह नेतृत्व संरचना हो, चुनावी रणनीति हो या पार्टी की जनता के बीच छवि।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।