बिहार विधानसभा चुनाव और कांग्रेस की पराजय
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। 2020 में 19 सीटों के साथ महागठबंधन में सहयोग देने वाली कांग्रेस इस बार केवल छह सीटों पर सिमट गई। इस हार ने इंडिया गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज कर दी है। विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता अब इस पर विचार कर रहे हैं कि किस प्रकार गठबंधन को पुनः संगठित किया जाए और चुनावी पराजय का प्रभाव कम किया जाए।
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस बार केवल 25 सीटें ही जीतीं, जो पिछले चुनाव के मुकाबले आधी से भी कम हैं। वहीं, एनडीए ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 202 सीटों पर विजय हासिल कर भारी बहुमत बनाया। इन परिणामों ने कांग्रेस के संगठनात्मक और चुनावी संकट को और बढ़ा दिया है।
अखिलेश यादव का नेतृत्व: विपक्ष की नई दिशा
समाजवादी पार्टी के एक विधायक रविदास मेहरोत्रा ने कहा है कि अखिलेश यादव को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की मजबूती और पिछले लोकसभा चुनाव में मिली 37 सीटों की जीत इसके प्रमाण हैं।
विधायक ने बताया कि अगर बिहार में बैलेट पेपर के माध्यम से मतदान हुआ होता, तो महागठबंधन निश्चित रूप से सरकार बना सकता था। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) प्रणाली पर सवाल उठाते हुए बार-बार बैलेट पेपर के पक्ष में अपनी राय व्यक्त की है।
कांग्रेस की हार के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार में कांग्रेस की पराजय के कई कारण हैं। पार्टी ने चुनावी रणनीति और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई रैलियों और प्रचारों का अपेक्षित प्रभाव नहीं दिखा। साथ ही, जनता ने राजद और अन्य क्षेत्रीय दलों के प्रति अधिक भरोसा जताया। इस स्थिति ने इंडिया गठबंधन के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की मांग को और बल दिया।
ममता बनर्जी का नाम भी चर्चा में
इससे पहले, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का नाम भी विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए चर्चा में आया था। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी ममता बनर्जी को गठबंधन प्रमुख बनाने की वकालत की थी। हालांकि, अब बिहार की हार के बाद अधिक जोर अखिलेश यादव पर दिया जा रहा है।
गठबंधन की रणनीति और भविष्य
विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस की हार और इंडिया गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना, अगले आम चुनावों पर भी प्रभाव डाल सकती है। अगर अखिलेश यादव नेतृत्व संभालते हैं, तो विपक्षी दलों को एक नई रणनीति और एकजुटता के साथ चुनावी मैदान में उतरने का अवसर मिलेगा।
विपक्षी दलों के नेताओं ने जोर देकर कहा है कि संगठनात्मक सुधार और रणनीतिक बदलाव अब अनिवार्य हैं। विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने के लिए नई नीतियों और स्थानीय मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस को अपने नेतृत्व और रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। वहीं, अखिलेश यादव जैसे सक्षम नेता के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन को नई दिशा मिल सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अब समय आ गया है जब गठबंधन को पुनः संगठित कर विपक्ष की मजबूत भूमिका सुनिश्चित की जाए।