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तीन देशों के राजदूतों ने पुतिन पर साधा निशाना, भारत ने जताई कड़ी आपत्ति

Putin India Visit: तीन यूरोपीय देशों के राजदूतों पर भारत की सख्त प्रतिक्रिया
Putin India Visit: तीन यूरोपीय देशों के राजदूतों पर भारत की सख्त प्रतिक्रिया (File Photo)
रूसी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से पहले यूके, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों ने पुतिन विरोधी लेख प्रकाशित किया। लेख में यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को जिम्मेदार ठहराया गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे असामान्य और अस्वीकार्य बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई। मंत्रालय ने कहा कि किसी तीसरे देश के साथ भारत के संबंधों पर सार्वजनिक टिप्पणी अच्छी कूटनीतिक प्रक्रिया नहीं है। यह घटना भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और
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नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक नया मोड़ तब आया जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले तीन बड़े यूरोपीय देशों के राजदूतों ने एक संयुक्त लेख प्रकाशित किया। यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों द्वारा लिखे गए इस लेख में यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन की कड़ी आलोचना की गई थी। इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इस कदम को गलत और अस्वीकार्य करार दिया है। यह घटना भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और कूटनीतिक मर्यादा दोनों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है।

पुतिन के दौरे से पहले यूरोपीय राजदूतों का बयान

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 दिसंबर को दो दिवसीय भारत यात्रा पर आने वाले हैं। इस दौरे में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात होनी है। दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा और ऊर्जा जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है। लेकिन इस दौरे से ठीक पहले तीन यूरोपीय देशों के राजदूतों ने एक संयुक्त लेख प्रकाशित किया जिसमें रूस और पुतिन की कड़ी आलोचना की गई।

फ्रांस के राजदूत थिएरी मथौ, जर्मनी के उच्चायुक्त फिलिप एकरमैन और ब्रिटेन के उच्चायुक्त लिंडी कैमरून ने मिलकर यह लेख लिखा। लेख का शीर्षक था – “दुनिया चाहती है कि यूक्रेन युद्ध खत्म हो जाए, लेकिन रूस शांति को लेकर गंभीरता से नहीं सोच रहा है।” इस लेख में यूक्रेन पर रूसी हमलों की निंदा करते हुए पुतिन को युद्ध जारी रखने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

लेख में क्या लिखा था

तीनों राजदूतों ने अपने संयुक्त लेख में यूक्रेन पर हो रहे हमलों को लेकर रूस पर सीधे आरोप लगाए। उन्होंने लिखा कि यूक्रेन पर जिस तरह से ड्रोन और मिसाइल हमले किए जा रहे हैं, वह किसी शांति चाहने वाले देश का व्यवहार नहीं है। लेख में कहा गया कि ये अंधाधुंध हमले कोई गलती या हादसे नहीं हैं, बल्कि रूस की निर्दयता और क्रूरता को दर्शाते हैं।

राजदूतों ने आगे लिखा कि पुतिन बार-बार शांति वार्ता में बाधा बन रहे हैं और समाधान से बचने की कोशिश कर रहे हैं। तीनों देश नाटो के सदस्य हैं और यूक्रेन को हर तरह का समर्थन देना जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सैन्य सहायता समेत हर संभव मदद यूक्रेन को दी जाती रहेगी।

भारतीय विदेश मंत्रालय की सख्त प्रतिक्रिया

तीनों यूरोपीय राजदूतों के इस लेख पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत और कड़ी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान जारी करते हुए कहा कि यह कदम बेहद असामान्य और अस्वीकार्य है। भारत ने साफ शब्दों में कहा कि किसी तीसरे देश के साथ भारत के संबंधों पर सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करना अच्छी कूटनीतिक प्रक्रिया नहीं है।

विदेश मंत्रालय ने कहा, “यह बेहद असामान्य है। किसी तीसरे देश के साथ भारत के संबंधों पर सार्वजनिक तौर से टिप्पणी करना अच्छी कूटनीतिक प्रक्रिया नहीं है। इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।” यह बयान भारत की स्पष्ट और मजबूत स्थिति को दर्शाता है।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति

भारत ने हमेशा से अपनी स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति का पालन किया है। भारत किसी भी देश के दबाव में आकर अपनी नीतियां नहीं बदलता। रूस के साथ भारत के पुराने और मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, ऊर्जा और तकनीक के क्षेत्र में गहरी साझेदारी है।

यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भी भारत ने संतुलित रुख अपनाया है। भारत ने युद्ध की निंदा की है और शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है, लेकिन साथ ही रूस के साथ अपने संबंधों को भी बनाए रखा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से कई बार बातचीत में कहा है कि यह युद्ध का समय नहीं है।

कूटनीतिक मर्यादा का सवाल

तीनों यूरोपीय राजदूतों का यह कदम कूटनीतिक मर्यादा के खिलाफ माना जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में यह नियम है कि एक देश में तैनात राजदूत उस देश के आंतरिक मामलों या अन्य देशों के साथ संबंधों पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करते। राजदूतों का काम अपने देश का प्रतिनिधित्व करना और मेजबान देश के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना होता है।

लेकिन यूके, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों ने इस मर्यादा को तोड़ते हुए पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले यह लेख प्रकाशित किया। यह कदम भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

पश्चिमी देशों का दबाव

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं और अन्य देशों से भी रूस के साथ संबंध कम करने की अपील की है। लेकिन भारत ने अपनी राष्ट्रीय हित के अनुसार अपनी नीति तय की है।

भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है। इससे पश्चिमी देश कई बार असहज महसूस करते रहे हैं। तीनों राजदूतों का यह लेख भी उसी दबाव का हिस्सा माना जा रहा है।

भारत-रूस संबंधों का महत्व

भारत और रूस के बीच कई दशकों पुरानी दोस्ती है। सोवियत संघ के समय से ही दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध रहे हैं। रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार है। भारत के पास जो हथियार और रक्षा उपकरण हैं, उनमें बड़ा हिस्सा रूसी है।

इसके अलावा परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारत ने अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ संबंध बनाए रखे हैं।

आगे की राह

तीनों यूरोपीय राजदूतों के इस लेख और भारत की सख्त प्रतिक्रिया ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर किसी का दबाव स्वीकार नहीं करता। पुतिन की भारत यात्रा निर्धारित समय पर होगी और दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी।

यह घटना भविष्य में कूटनीतिक मर्यादा के पालन के बारे में भी एक संदेश देती है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अन्य देशों के साथ उसके संबंधों पर सार्वजनिक टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह भारत की बढ़ती ताकत और आत्मविश्वास को भी दर्शाता है।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.