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अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर कोलकाता में सम्मेलन, वक्फ संशोधन कानून का विरोध

Minority Rights Day: कोलकाता में अल्पसंख्यक अधिकार सम्मेलन, वक्फ कानून पर चिंता
Minority Rights Day: कोलकाता में अल्पसंख्यक अधिकार सम्मेलन, वक्फ कानून पर चिंता (File Photo)
अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर कोलकाता में अल्पसंख्यक युवा फेडरेशन ने सम्मेलन आयोजित किया। वक्फ संशोधन कानून का विरोध करते हुए अल्पसंख्यकों के धार्मिक व सांस्कृतिक अधिकारों की तुरंत वापसी की मांग की गई। धार्मिक विभाजन की राजनीति और संवैधानिक सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा हुई। संगठन ने अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया।
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आज 18 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के अवसर पर कोलकाता में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित किया गया। शेक्सपियर सरणी स्थित इरफान लाइब्रेरी में अल्पसंख्यक युवा फेडरेशन की ओर से यह कार्यक्रम रखा गया जिसमें अल्पसंख्यकों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की मांग को लेकर जोरदार चर्चा हुई। संगठन के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे वक्फ संशोधन कानून का विरोध करते हुए इसे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर सीधा हमला बताया।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए अल्पसंख्यक युवा फेडरेशन के प्रवक्ता मोहम्मद कामरुज्जामान ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करता है, लेकिन यहां अल्पसंख्यकों के साथ जो व्यवहार हो रहा है वह चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार छीने जा रहे हैं और वक्फ संशोधन कानून इसका एक बड़ा उदाहरण है।

वक्फ संशोधन कानून पर चिंता

सम्मेलन में वक्फ संशोधन कानून को लेकर गहरी चिंता जताई गई। प्रतिनिधियों ने बताया कि इस कानून के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से मस्जिद, मदरसा और कब्रिस्तान संचालित करने के अधिकार छीने जा रहे हैं। यह कानून सीधे तौर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। सदियों से चली आ रही वक्फ व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा है।

कामरुज्जामान ने कहा कि हर देश के संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष सुरक्षा के प्रावधान होते हैं, लेकिन भारत में इन प्रावधानों का पालन नहीं हो रहा है। उल्टे अल्पसंख्यक समुदाय पर एक के बाद एक कानून थोपे जा रहे हैं जो उन्हें दबाने का काम कर रहे हैं।

भाषाई और धार्मिक अधिकारों का मुद्दा

सम्मेलन में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन पर भी चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार ऐसी नीतियां लाई जा रही हैं जो अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेल रही हैं। धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण, शिक्षा में हस्तक्षेप और सांस्कृतिक अधिकारों को सीमित करने की कोशिशें लगातार जारी हैं।

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म को संरक्षित करने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन व्यवहार में इन अधिकारों का सम्मान नहीं किया जा रहा है। मदरसों की शिक्षा पद्धति पर सवाल उठाना और उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा के नाम पर बदलने की कोशिश समुदाय की पहचान पर हमला है।

धार्मिक विभाजन की राजनीति

सम्मेलन में इस बात पर भी चिंता जताई गई कि देश में धार्मिक विभाजन की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदू-मुस्लिम विभाजन पैदा करने की साजिश लगातार चल रही है। धार्मिक उकसावे दिए जा रहे हैं और समाज में नफरत फैलाने का काम हो रहा है।

कामरुज्जामान ने कहा कि यह राजनीति देश की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है। धर्म के नाम पर लोगों को बांटना और वोट बैंक की राजनीति करना देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। सभी समुदायों को साथ लेकर चलना ही सच्ची लोकतांत्रिक भावना है।

संवैधानिक सुरक्षा की मांग

सम्मेलन में अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग की गई। प्रतिनिधियों ने कहा कि संविधान में दिए गए अल्पसंख्यक अधिकारों को वास्तविक रूप से लागू किया जाना चाहिए। केवल कागजों पर अधिकार होने से काम नहीं चलेगा, जमीनी स्तर पर भी इन्हें सुनिश्चित करना होगा।

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, रोजगार और विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए विशेष प्रयास होने चाहिए। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यक समुदायों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।

अधिकार वापसी की अपील

सम्मेलन में मांग की गई कि अल्पसंख्यकों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार तुरंत वापस दिए जाएं। वक्फ संशोधन कानून जैसे विवादास्पद कानूनों को वापस लिया जाए और समुदाय के साथ बातचीत करके ही कोई भी निर्णय लिया जाए।

कामरुज्जामान ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय शांतिप्रिय है और देश के विकास में बराबर का योगदान देता है। उनके अधिकारों का सम्मान करना सरकार की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में हर नागरिक को समान अधिकार मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हो।

अंतर्राष्ट्रीय मानकों का हवाला

सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार मानकों का भी हवाला दिया गया। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई दिशानिर्देश दिए हैं। भारत को भी इन मानकों का पालन करना चाहिए और अपने अल्पसंख्यक नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।

प्रतिनिधियों ने कहा कि दुनिया भर में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाए जाते हैं, लेकिन भारत में उल्टी दिशा में काम हो रहा है। यह स्थिति देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि के लिए भी नुकसानदायक है।

युवाओं की भूमिका

सम्मेलन में युवाओं से अपील की गई कि वे अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आएं। युवा पीढ़ी को जागरूक होना चाहिए और अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करनी चाहिए। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़कर ही समुदाय का विकास संभव है।

अल्पसंख्यक युवा फेडरेशन ने आगे भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए आवाज उठाने का संकल्प लिया। सम्मेलन में बड़ी संख्या में युवा, सामाजिक कार्यकर्ता और समुदाय के प्रतिनिधि शामिल हुए और अपने अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया।

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Asfi Shadab

एक लेखक, चिंतक और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता, जो खेल, राजनीति और वित्त की जटिलता को समझते हुए उनके बीच के रिश्तों पर निरंतर शोध और विश्लेषण करते हैं। जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरल, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध।